कतर जैसे पुराने साथी भी झुक रहे अमेरिका की ओर, क्या हमास के पास ट्रंप की बात मानने के अलावा अब कोई रास्ता नहीं?

कतर जैसे पुराने साथी भी झुक रहे अमेरिका की ओर, क्या हमास के पास ट्रंप की बात मानने के अलावा कोई रास्ता नहीं

पश्चिम एशिया में एक बार फिर भू-राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। जो देश पहले हमास के “मित्र” या “सहयोगी” माने जाते थे, वे अब धीरे-धीरे अमेरिका की ओर झुकते नजर आ रहे हैं। ताजा उदाहरण कतर का है — वही कतर जिसने वर्षों तक हमास के नेताओं को पनाह दी, आर्थिक मदद दी और गाजा संकट में मध्यस्थ की भूमिका निभाई। लेकिन अब खबरें आ रही हैं कि कतर भी डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के दबाव में आकर अपनी नीति में बड़ा बदलाव करने जा रहा है।

हमास और कतर के रिश्ते: पुराने दोस्त, नए तनाव

कतर ने पिछले कई दशकों से फिलिस्तीन के मुद्दे पर खुलकर हमास का समर्थन किया है।

  • गाजा में विकास परियोजनाओं के लिए अरबों डॉलर की फंडिंग दी,
  • हमास के वरिष्ठ नेताओं को दोहा में सुरक्षित ठिकाना दिया,
  • और हर बार इज़राइल-हमास संघर्ष के दौरान मध्यस्थ की भूमिका निभाई।

लेकिन हालिया घटनाक्रम में कतर की प्राथमिकताएं बदलती दिख रही हैं।
अमेरिका ने दोहा पर यह स्पष्ट दबाव बनाया है कि अगर वह हमास से दूरी नहीं बनाएगा, तो उसके खिलाफ आर्थिक और राजनीतिक कार्रवाई की जा सकती है।

ट्रंप की नई रणनीति: ‘या तो हमारे साथ, या खिलाफ’

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और अब रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में कहा था —

“हम मध्य पूर्व में आतंकवाद को खत्म करने के लिए हर संभव कदम उठाएंगे। जो भी हमास या उसके सहयोगियों का समर्थन करेगा, वह हमारे खिलाफ माना जाएगा।”

यह बयान साफ संकेत था कि ट्रंप प्रशासन अब किसी भी देश को तटस्थ रुख अपनाने की अनुमति नहीं देगा।
कतर, जो अब तक अमेरिका का भी साझेदार था और हमास का भी समर्थक, दो पाटों में फंस गया है।

अमेरिका का आर्थिक दबाव

अमेरिका और कतर के बीच तेल और गैस व्यापार, रक्षा सहयोग और निवेश समझौते के जरिए गहरे संबंध हैं।
कतर में अमेरिकी एयरबेस अल-उदीद भी है, जो मध्य पूर्व में अमेरिका का सबसे बड़ा सैन्य ठिकाना है।

ऐसे में अमेरिका का संदेश साफ है — अगर कतर ने हमास से दूरी नहीं बनाई, तो उसकी आर्थिक और सुरक्षा साझेदारी पर असर पड़ सकता है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, कतर ने अब हमास के प्रतिनिधियों से बातचीत सीमित कर दी है और उनके प्रवास की अवधि पर नए नियम लागू किए हैं।

हमास पर बढ़ता अलगाव

हमास पहले से ही कई देशों से कूटनीतिक रूप से अलग-थलग हो चुका है।

  • मिस्र ने हाल ही में हमास नेताओं की आवाजाही पर रोक लगा दी है।
  • सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात पहले ही संगठन से दूरी बना चुके हैं।
  • अब अगर कतर भी पीछे हटता है, तो हमास के पास सीरिया और ईरान जैसे सीमित विकल्प ही बचेंगे।

मध्य पूर्व के विश्लेषकों का मानना है कि कतर की यह नीति परिवर्तन हमास के लिए सबसे बड़ा झटका साबित हो सकता है।

ट्रंप की ‘पीस प्लान 2.0’ पर चर्चा

अमेरिकी मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, ट्रंप फिर से “मिडिल ईस्ट पीस प्लान 2.0” पर काम कर रहे हैं।
यह योजना पहले वाले “अब्राहम एकॉर्ड्स” की तरह ही है, जिसके तहत अमेरिका अरब देशों को इज़राइल के साथ सामान्य संबंध बनाने के लिए प्रेरित करता है।
कतर पर भी अब यही दबाव है कि वह हमास को “गैर-राजनीतिक इकाई” मानते हुए इज़राइल के साथ राजनयिक संपर्क बढ़ाए।

हमास की स्थिति: चारों ओर से घिरा हुआ

हमास इस समय तीन मोर्चों पर संघर्ष कर रहा है —

  1. सैन्य दबाव: इज़राइल की लगातार हवाई और जमीनी कार्रवाई से गाजा तबाह है।
  2. आर्थिक संकट: फंडिंग स्रोत बंद हो रहे हैं।
  3. राजनयिक अलगाव: पारंपरिक सहयोगी देश भी किनारा कर रहे हैं।

एक वरिष्ठ फिलिस्तीनी पत्रकार ने कहा,

“हमास की राजनीतिक स्थिति पहले कभी इतनी कमजोर नहीं रही। कतर का झुकाव अमेरिका की ओर इसका निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।”

कतर के लिए भी जोखिम भरा कदम

कतर भले ही अमेरिकी दबाव में यह कदम उठा रहा हो, लेकिन उसके लिए भी यह फैसला आसान नहीं है।
दोहा की साख अब तक ‘मध्यस्थ देश’ के रूप में रही है — जो संघर्ष में दोनों पक्षों से संवाद रखता था।
अगर कतर अब खुलकर अमेरिका और इज़राइल के पक्ष में दिखता है, तो उसकी क्षेत्रीय विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ सकते हैं।

ईरान की बढ़ती सक्रियता

हमास के लिए अब ईरान ही एकमात्र मज़बूत सहारा बचा है।
ईरान खुले तौर पर अमेरिका और इज़राइल का विरोध करता है और हमास को सैन्य मदद भी देता है।
हालांकि, कतर के पीछे हटने से हमास-ईरान गठबंधन और भी मजबूत हो सकता है — जो आने वाले समय में क्षेत्रीय संतुलन को बिगाड़ सकता है।

अमेरिकी विश्लेषकों का कहना है कि यह स्थिति एक नए प्रॉक्सी संघर्ष का कारण बन सकती है, जिसमें ईरान, अमेरिका और इज़राइल के बीच तनाव और बढ़ेगा।

भारत की नजर भी इस घटनाक्रम पर

भारत लंबे समय से मध्य पूर्व की स्थिरता के पक्ष में रहा है।
भारत के ऊर्जा स्रोतों और प्रवासी समुदाय का बड़ा हिस्सा इसी क्षेत्र से जुड़ा है।
इसलिए भारत कतर और अमेरिका के बदलते रिश्तों को बेहद बारीकी से देख रहा है।
भारत नहीं चाहता कि क्षेत्र में कोई नई अस्थिरता पैदा हो, क्योंकि इससे ऊर्जा आपूर्ति और आर्थिक स्थिरता पर असर पड़ सकता है।

क्या हमास ट्रंप की बात मानेगा?

अब सबसे बड़ा सवाल यही है — क्या हमास झुक जाएगा?
वर्तमान स्थिति में हमास के पास विकल्प बहुत सीमित हैं।

  • अगर वह ट्रंप की शर्तें मानता है, तो उसे कूटनीतिक राहत मिल सकती है,
  • अगर नहीं मानता, तो उसे पूरी तरह से अलग-थलग पड़ने का खतरा है।

हालांकि हमास की विचारधारा और ट्रंप की नीतियों में 180 डिग्री का अंतर है, लेकिन राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए उसे कुछ व्यावहारिक रियायतें देनी पड़ सकती हैं।

निष्कर्ष

कतर का अमेरिका की ओर झुकाव सिर्फ एक देश की विदेश नीति का बदलाव नहीं है, बल्कि यह पूरे मध्य पूर्व की रणनीतिक दिशा में परिवर्तन का संकेत है।
हमास के लिए यह समय अस्तित्व की लड़ाई जैसा है — जहां उसके पुराने सहयोगी पीछे हट रहे हैं और नए विकल्प बहुत सीमित हैं।

अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो संभव है कि आने वाले महीनों में हमास को अपनी राजनीतिक रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़े।
कतर का यह कदम यह भी दिखाता है कि अब मध्य पूर्व की राजनीति धर्म या विचारधारा से नहीं, बल्कि आर्थिक और सुरक्षा हितों से संचालित होगी।

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