नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली एक बार फिर पुलिस और वकीलों के बीच तनातनी का मैदान बन गई है। हाल ही में जारी हुआ दिल्ली पुलिस का एक विवादित सर्कुलर पूरे कानून व्यवस्था तंत्र को हिला गया है। इस सर्कुलर में पुलिसकर्मियों को वकीलों से निपटने के लिए सख्त निर्देश दिए गए हैं। इसके विरोध में राजधानी के हज़ारों वकीलों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल का ऐलान कर दिया है। अदालतों में कामकाज लगभग ठप पड़ गया है और आम जनता को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
यह विवाद केवल सर्कुलर तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे जुड़ी कई परतें दिल्ली के न्यायिक तंत्र, पुलिस व्यवस्था और लोकतांत्रिक संतुलन को चुनौती देती नजर आ रही हैं। इस रिपोर्ट में हम विस्तार से समझेंगे:
- सर्कुलर में आखिर लिखा क्या था?
- वकील क्यों भड़के?
- हड़ताल का असर अदालतों और जनता पर
- पुलिस बनाम वकील की पुरानी तनातनी
- राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
- प्रशासन की कोशिशें और समाधान की राह
- कानूनी विशेषज्ञों की राय
- भविष्य की संभावनाएँ और निहितार्थ
1. सर्कुलर में आखिर लिखा क्या था?
दिल्ली पुलिस ने हाल ही में एक आंतरिक सर्कुलर जारी किया। इसमें कहा गया था:
- यदि वकील किसी विवाद या झगड़े में शामिल हों, तो पुलिसकर्मी तुरंत एफआईआर दर्ज करें।
- किसी भी वकील द्वारा पुलिसकर्मी पर दबाव डालने या अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए।
- थानों को निर्देश दिया गया कि किसी वकील से जुड़े मामले में ऊपरी दबाव में न आएं और “कानून सबके लिए बराबर है” का पालन करें।
यह सर्कुलर बाहर आते ही वकील समुदाय भड़क गया। उनका आरोप है कि यह वकीलों को अपराधी की तरह पेश करने की साजिश है।
2. वकील क्यों भड़के?
वकीलों का कहना है कि:
- यह सर्कुलर उन्हें सीधे तौर पर टारगेट करता है।
- इससे यह संदेश जा रहा है कि वकील ही विवाद की जड़ होते हैं।
- अदालतों और थानों में अक्सर पुलिस-वकील टकराव होता है, लेकिन सर्कुलर ने इसे एकतरफा कर दिया है।
- बार काउंसिल ऑफ इंडिया और दिल्ली बार एसोसिएशन ने इसे “न्यायिक गरिमा का अपमान” बताया।
इसी नाराजगी के चलते वकीलों ने तुरंत आपात बैठक बुलाई और हड़ताल का ऐलान कर दिया।
3. हड़ताल का असर अदालतों और जनता पर
दिल्ली की जिला अदालतें – साकेत, पटियाला हाउस, तीस हजारी, कड़कड़डूमा और रोहिणी – लगभग ठप हो गईं।
- 20,000 से अधिक वकील हड़ताल पर चले गए।
- नए केसों की सुनवाई रुकी और पुराने मामलों में तारीखें आगे खिसक गईं।
- हजारों मुवक्किलों को अपने केस की सुनवाई के लिए अदालत से मायूस लौटना पड़ा।
- बेल और रिमांड जैसे जरूरी मामलों में भी देरी हुई।
जनता का कहना है कि इस विवाद का नुकसान उन्हें हो रहा है जबकि जिम्मेदार संस्थाएँ आपसी खींचतान में लगी हैं।
4. पुलिस बनाम वकील की पुरानी तनातनी
दिल्ली में यह पहला मौका नहीं है जब वकीलों और पुलिस में टकराव हुआ है।
- 2019 का तीस हजारी कोर्ट कांड: एक पार्किंग विवाद को लेकर पुलिस और वकील आमने-सामने आ गए थे। इसमें कई पुलिसकर्मी और वकील घायल हुए थे।
- कड़कड़डूमा कोर्ट विवाद: वकीलों और पुलिस में झड़प हुई थी, जिसके बाद कई दिन अदालतें प्रभावित रहीं।
- इसके अलावा छोटे-छोटे विवाद अक्सर थानों और अदालतों में देखने को मिलते हैं।
यानी यह विवाद कोई नया नहीं, बल्कि लंबे समय से चल रही अविश्वास की खाई का हिस्सा है।
5. राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
इस विवाद ने राजनीति को भी गरमा दिया है।
- AAP (आम आदमी पार्टी): पार्टी ने पुलिस सर्कुलर की आलोचना की और कहा कि दिल्ली पुलिस “केंद्र सरकार की कठपुतली” बन चुकी है।
- BJP: बीजेपी नेताओं ने कहा कि कानून का राज सबके लिए है और वकील भी किसी से ऊपर नहीं।
- कांग्रेस: कांग्रेस ने दोनों पक्षों से बातचीत कर समाधान निकालने की अपील की और कहा कि जनता को पीड़ित नहीं होना चाहिए।
6. प्रशासन की कोशिशें और समाधान की राह
दिल्ली के उपराज्यपाल और पुलिस कमिश्नर ने वकीलों के प्रतिनिधियों से बातचीत शुरू की है।
- पुलिस का कहना है कि सर्कुलर को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
- अधिकारियों ने साफ किया कि यह किसी विशेष पेशे को टारगेट करने के लिए नहीं, बल्कि कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जारी किया गया है।
- सूत्रों के अनुसार, सरकार सर्कुलर में कुछ बदलाव करने पर विचार कर रही है।
7. कानूनी विशेषज्ञों की राय
वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व जजों का कहना है कि:
- वकील और पुलिस दोनों न्याय व्यवस्था के दो महत्वपूर्ण स्तंभ हैं।
- किसी भी तरह का सर्कुलर संतुलित होना चाहिए, न कि किसी पक्ष को कटघरे में खड़ा करे।
- हड़ताल से जनता का नुकसान सबसे बड़ा है।
- तत्काल संवाद और सर्कुलर की पुनः समीक्षा ही समाधान है।
8. भविष्य की संभावनाएँ और निहितार्थ
यह विवाद केवल पुलिस-वकील के रिश्ते तक सीमित नहीं है। इसके दूरगामी असर हो सकते हैं।
- अगर सर्कुलर वापस नहीं लिया गया, तो हड़ताल लंबी चल सकती है।
- इससे दिल्ली की न्यायिक प्रक्रिया पूरी तरह ठप हो जाएगी।
- आम जनता में न्याय व्यवस्था को लेकर भरोसा कमजोर होगा।
- सरकार और पुलिस पर लोकतांत्रिक संस्थाओं को दबाने का आरोप और गहराएगा।
निष्कर्ष
दिल्ली पुलिस का यह सर्कुलर एक बार फिर राजधानी की न्यायिक और प्रशासनिक व्यवस्था को टकराव के मोड़ पर ले आया है। वकीलों का हड़ताल पर जाना, अदालतों का ठप होना और जनता का न्याय से वंचित रहना किसी भी लोकतंत्र के लिए अच्छी तस्वीर नहीं है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार और पुलिस अपने कदम पीछे खींचते हैं या वकील अपनी हड़ताल को और आक्रामक बनाते हैं। फिलहाल इतना साफ है कि इस विवाद ने फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है – क्या दिल्ली में पुलिस और वकील कभी एक-दूसरे पर भरोसा कर पाएंगे?
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