“बिहार चुनाव में मुस्लिम वोट: RJD का दबदबा या चनौतियाँ? आंकड़ों से जानें लालू यादव की असली ताकत!”

"बिहार चुनाव में मुस्लिम वोट: RJD का दबदबा या चनौतियाँ? आंकड़ों से जानें लालू यादव की असली ताकत!"

बिहार की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक हमेशा से निर्णायक भूमिका निभाता रहा है। राज्य की सामाजिक और राजनीतिक संरचना में मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी लगभग 16–17 प्रतिशत मानी जाती है। यही कारण है कि हर चुनाव में मुस्लिम वोट किस ओर झुकेंगे, यह सवाल राजनीतिक दलों के लिए सबसे अहम होता है। खासकर राष्ट्रीय जनता दल (RJD), जिसका आधार ‘MY समीकरण’ यानी मुस्लिम–यादव गठजोड़ पर टिका है।

लेकिन क्या मुस्लिम वोट अब भी पूरी तरह से RJD के पास हैं? या फिर बदलते राजनीतिक समीकरणों और नई चुनौतियों के चलते यह वोट बैंक बिखर रहा है? आइए, आंकड़ों और राजनीतिक घटनाक्रम के आधार पर समझते हैं।

 मुस्लिम वोट और RJD का इतिहास

  • लालू प्रसाद यादव ने 1990 के दशक में ‘मंडल बनाम कमंडल’ की राजनीति के सहारे मुस्लिम–यादव समीकरण को मजबूत किया।
  • मुस्लिम मतदाता लंबे समय तक RJD के साथ रहे क्योंकि उन्हें लगा कि लालू यादव ही उन्हें सुरक्षा और राजनीतिक प्रतिनिधित्व दिला सकते हैं।
  • 2005 तक RJD को मुस्लिम वोटों का सबसे बड़ा हिस्सा मिला, लेकिन इसके बाद राजनीति में बदलाव आने लगा।

पिछले चुनावों का गणित

  1. 2015 विधानसभा चुनाव
    • महागठबंधन (RJD–JDU–कांग्रेस) ने मिलकर चुनाव लड़ा।
    • मुस्लिम वोटों का लगभग 70–75% हिस्सा महागठबंधन को मिला।
    • नतीजा: RJD 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी।
  2. 2020 विधानसभा चुनाव
    • इस बार JDU और RJD अलग–अलग थे।
    • RJD को मुस्लिम वोट का अच्छा हिस्सा मिला, लेकिन AIMIM ने सीमांचल इलाके में सेंधमारी की।
    • नतीजा: RJD सबसे बड़ी पार्टी (75 सीट) तो बनी, लेकिन सत्ता से दूर रही।
  3. लोकसभा चुनाव (2019)
    • RJD का प्रदर्शन कमजोर रहा।
    • मुस्लिम वोट का बड़ा हिस्सा कांग्रेस और गठबंधन को मिला, लेकिन मोदी लहर के सामने टिक नहीं पाया।

नई चुनौतियाँ RJD के सामने

  1. AIMIM और सीमांचल
    • असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने सीमांचल में मुस्लिम वोटों को आकर्षित किया।
    • 2020 में AIMIM को पाँच सीटें मिलीं, जिससे RJD को नुकसान हुआ।
  2. जदयू की रणनीति
    • नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यकों को कई योजनाओं से साधने की कोशिश की।
    • शिक्षा, छात्रवृत्ति और रोजगार के माध्यम से मुस्लिम युवाओं तक पहुंच बनाई।
  3. बीजेपी का ‘पसमांदा मुस्लिम’ कार्ड
    • बीजेपी अब पसमांदा मुसलमानों को टारगेट कर रही है, जिससे मुस्लिम वोटों में बिखराव हो सकता है।
  4. युवाओं का रुझान
    • मुस्लिम युवा अब केवल पहचान की राजनीति नहीं बल्कि शिक्षा और रोजगार की राजनीति को महत्व दे रहे हैं।
    • इससे RJD का पारंपरिक आधार कमजोर हो सकता है।

आंकड़ों में RJD की ताकत

  • 16–17% मुस्लिम वोटों में से अगर RJD को 60–65% भी मिलते हैं तो यह पार्टी को विधानसभा की 50–60 सीटों पर सीधा फायदा पहुंचाते हैं।
  • यादव समुदाय (14%) और मुस्लिम समुदाय (16–17%) को जोड़ दें तो RJD का कोर वोट बैंक लगभग 30–31% बनता है।
  • यही समीकरण RJD को अब भी बिहार की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनाए हुए है।

मुस्लिम वोट: एकजुट या बिखरे हुए?

  • शहरी मुस्लिम वोटर: कांग्रेस और RJD के बीच बंटते हैं।
  • ग्रामीण मुस्लिम वोटर: RJD का झुकाव ज्यादा, लेकिन AIMIM और जदयू भी हिस्सेदारी ले रहे हैं।
  • युवा मुस्लिम वोटर: रोजगार और शिक्षा को लेकर नई राजनीतिक ताकतों की ओर झुकाव दिखा रहे हैं।

 निष्कर्ष

बिहार में मुस्लिम वोट अब भी RJD की सबसे बड़ी ताकत बने हुए हैं। लेकिन AIMIM, जदयू और बीजेपी की रणनीतियाँ इस वोट बैंक को धीरे–धीरे चुनौती दे रही हैं।
लालू यादव और अब तेजस्वी यादव के सामने असली परीक्षा यही है कि वे इस वोट बैंक को एकजुट रख पाते हैं या नहीं।

अगर मुस्लिम–यादव समीकरण पहले जैसा मज़बूत रहता है, तो RJD बिहार की राजनीति में लंबे समय तक प्रमुख ताकत बनी रह सकती है। लेकिन अगर इसमें सेंधमारी होती रही, तो भविष्य में सत्ता का रास्ता उनके लिए और कठिन हो सकता है।

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