क़तर की राजधानी दोहा में इस्लामिक देशों का एक बड़ा सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें करीब 60 मुस्लिम-बहुल देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए। इस बैठक में आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक मुद्दों पर गहन चर्चा हुई। सबसे अहम बात यह रही कि कई प्रतिनिधियों ने अब समय आ गया है कि इस्लामिक मुल्क गैर-मुस्लिम देशों की नीतियों और चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए एकजुट होकर कदम उठाएँ।
बैठक का एजेंडा
- इस सम्मेलन का मकसद इस्लामिक देशों के बीच सहयोग बढ़ाना और वैश्विक चुनौतियों का साझा समाधान खोजना था।
- बैठक में ऊर्जा, व्यापार, सुरक्षा और धार्मिक पहचान से जुड़े मुद्दों पर बात हुई।
- खासतौर पर इस बात पर जोर दिया गया कि मुस्लिम देशों को अपने हितों की रक्षा के लिए वैश्विक मंचों पर मिलकर आवाज उठानी होगी।
गैर-मुस्लिम देशों पर चिंता
कई प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि गैर-मुस्लिम देश लगातार मुस्लिम दुनिया के खिलाफ भेदभावपूर्ण नीतियाँ अपना रहे हैं।
- पश्चिमी देशों में बढ़ती इस्लामोफोबिया की घटनाओं पर चिंता जताई गई।
- फिलिस्तीन और अन्य मुस्लिम देशों में जारी संघर्षों का भी मुद्दा उठा।
- कुछ नेताओं ने कहा कि अगर मुस्लिम देश एक-दूसरे के साथ नहीं आए तो आने वाले समय में उन्हें और मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
आर्थिक सहयोग पर जोर
सम्मेलन में यह प्रस्ताव रखा गया कि मुस्लिम देश आपस में आर्थिक सहयोग को बढ़ाएँ और अपने संसाधनों का साझा उपयोग करें।
- तेल और गैस जैसे प्राकृतिक संसाधनों को लेकर साझा नीति बनाने की बात हुई।
- शिक्षा और तकनीकी क्षेत्र में आपसी निवेश को बढ़ावा देने पर भी चर्चा हुई।
राजनीतिक और धार्मिक संदेश
सम्मेलन में नेताओं ने कहा कि इस्लामिक दुनिया को अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास कराने का समय आ गया है।
- प्रतिनिधियों ने यह भी कहा कि वैश्विक स्तर पर मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता और सम्मान की रक्षा करना जरूरी है।
- कई नेताओं ने युवाओं को शिक्षा और तकनीक के जरिए आगे बढ़ने की अपील की, ताकि वे भविष्य में इस्लामिक दुनिया को मजबूत बना सकें।
विशेषज्ञों की राय
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों का मानना है कि यह सम्मेलन इस्लामिक देशों की बढ़ती असुरक्षा और बदलते वैश्विक समीकरणों की झलक है।
- विशेषज्ञ कहते हैं कि गैर-मुस्लिम देशों के खिलाफ एकजुटता की बात ज्यादा राजनीतिक संदेश है, जिसे आंतरिक मतभेदों को भुलाकर लागू करना मुश्किल हो सकता है।
- हालांकि, अगर मुस्लिम देश आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र में सहयोग बढ़ाते हैं तो यह उनके लिए फायदेमंद साबित होगा।
निष्कर्ष
दोहा में हुए इस सम्मेलन से साफ है कि मुस्लिम दुनिया अब खुद को मजबूत और संगठित दिखाना चाहती है। भले ही गैर-मुस्लिम देशों के खिलाफ बयानबाजी राजनीतिक हो, लेकिन यह संकेत जरूर है कि आने वाले समय में इस्लामिक देश अपने हितों को लेकर अधिक सक्रिय और आक्रामक नीति अपना सकते हैं।
















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