भारतीय शेयर बाजार से विदेशी निवेशकों का टूटा भरोसा, 1.98 लाख करोड़ की भारी बिकवाली से मची हलचल

भारतीय शेयर बाजार

भारतीय शेयर बाजार (Indian Stock Market) में पिछले कुछ हफ्तों से जारी उतार-चढ़ाव के बीच अब एक बड़ा झटका सामने आया है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने भारतीय इक्विटी मार्केट से 1.98 लाख करोड़ रुपये की भारी बिकवाली कर दी है। यह आंकड़ा इस साल की सबसे बड़ी निकासी में से एक माना जा रहा है।

इससे बाजार में न सिर्फ अस्थिरता बढ़ी है, बल्कि निवेशकों के मन में चिंता का माहौल भी बन गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक आर्थिक मंदी, अमेरिका की ब्याज दर नीति और एशियाई बाजारों में कमजोरी ने एफपीआई को भारत से पैसे निकालने पर मजबूर किया है।

विदेशी निवेशकों ने क्यों निकाले इतने पैसे?

भारतीय शेयर बाजार से इतनी बड़ी बिकवाली के पीछे कई प्रमुख कारण हैं—

  1. अमेरिका की ब्याज दर नीति:
    अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने संकेत दिए हैं कि ब्याज दरों में फिलहाल कोई कमी नहीं की जाएगी।
    इससे अमेरिकी बॉन्ड यील्ड बढ़ी है, और निवेशकों के लिए डॉलर में निवेश ज्यादा आकर्षक बन गया है।
  2. रुपये की कमजोरी:
    रुपये में लगातार गिरावट के चलते विदेशी निवेशकों को अपने निवेश पर कम रिटर्न मिल रहा है।
    डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 84.20 के पार पहुंच गई है, जो एफपीआई के लिए चिंता का विषय है।
  3. चीन और अन्य एशियाई बाजारों में प्रतिस्पर्धा:
    कई निवेशक अब भारत की जगह वियतनाम, इंडोनेशिया और ताइवान जैसे बाजारों की ओर रुख कर रहे हैं,
    जहां उत्पादन लागत कम और नीतिगत स्थिरता अधिक है।
  4. तेल की कीमतों में उछाल:
    कच्चे तेल की कीमत 95 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच गई है, जिससे भारत का आयात बिल बढ़ेगा और महंगाई पर दबाव बनेगा।

किन सेक्टरों पर पड़ा सबसे ज्यादा असर

इस बिकवाली का सबसे ज्यादा असर बैंकिंग, आईटी, और मेटल सेक्टर पर पड़ा है।

  • बैंकिंग सेक्टर: विदेशी निवेशक बड़ी मात्रा में प्राइवेट बैंकों जैसे एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, और कोटक महिंद्रा बैंक से पैसा निकाल रहे हैं।
  • आईटी सेक्टर: अमेरिका और यूरोप की मांग घटने से टीसीएस, इन्फोसिस, विप्रो जैसे शेयरों में भी दबाव है।
  • मेटल सेक्टर: चीन में औद्योगिक उत्पादन घटने से स्टील और एल्युमिनियम कंपनियों के शेयर गिरे हैं।

घरेलू निवेशकों (DII) ने थामा बाजार का सहारा

जहां विदेशी निवेशकों ने पैसे निकाले, वहीं घरेलू संस्थागत निवेशकों (DII) ने बाजार को संभालने की कोशिश की।
सितंबर महीने में DII ने लगभग 1.32 लाख करोड़ रुपये की खरीदारी की, जिससे बाजार को आंशिक स्थिरता मिली।

म्यूचुअल फंड्स और रिटेल निवेशकों की लगातार SIP (Systematic Investment Plan) के जरिए बढ़ती भागीदारी से भारतीय बाजार अभी भी मजबूत बना हुआ है।

सेंसेक्स और निफ्टी पर पड़ा असर

एफपीआई की बिकवाली का सीधा असर सेंसेक्स और निफ्टी पर देखने को मिला।

  • सेंसेक्स लगभग 2,000 अंकों तक लुढ़का।
  • निफ्टी 23,000 के स्तर से नीचे फिसल गया।
  • मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में भी 10-12% तक की गिरावट दर्ज की गई।

ब्रोकरेज फर्मों का कहना है कि विदेशी फंड्स की निकासी से लिक्विडिटी पर असर पड़ा है, जिससे मार्केट में दबाव बना रहेगा।

क्या है विशेषज्ञों की राय?

मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के विश्लेषक का कहना है —

“विदेशी निवेशक अब सावधानी की मुद्रा में हैं। उन्हें लगता है कि भारतीय बाजार फिलहाल ओवरवैल्यूड है।
लेकिन दीर्घकाल में भारत का ग्रोथ स्टोरी बरकरार है।”

वहीं एचडीएफसी सिक्योरिटीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा है —

“अगर रुपया और गिरता है या अमेरिकी फेड ब्याज दरें बढ़ाता है, तो विदेशी निवेशकों की बिकवाली जारी रह सकती है।”

क्या दोबारा लौटेंगे विदेशी निवेशक?

आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के दौरान स्थिति सुधर सकती है।
भारत का GDP ग्रोथ रेट 7% के आसपास रहने का अनुमान है, जो दुनिया में सबसे तेज है।
इसके अलावा, कई वैश्विक कंपनियां भारत को ‘China+1 Strategy’ के तहत उत्पादन केंद्र के रूप में देख रही हैं।

इसलिए यह माना जा रहा है कि

“शॉर्ट टर्म में बिकवाली जारी रह सकती है, लेकिन लॉन्ग टर्म में भारत फिर से एफपीआई के लिए पसंदीदा बाजार बनेगा।”

निष्कर्ष

विदेशी निवेशकों की 1.98 लाख करोड़ रुपये की बिकवाली ने भारतीय शेयर बाजार को झकझोर दिया है।
हालांकि घरेलू निवेशकों की मजबूती और भारत की आर्थिक वृद्धि दर के कारण बाजार में स्थायित्व बना हुआ है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह गिरावट अस्थायी है और भारत की अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है।
जैसे ही वैश्विक हालात स्थिर होंगे, विदेशी निवेशक फिर से भारतीय बाजार में लौट आएंगे।

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