अफगानिस्तान के सामने बेदम शहबाज शरीफ की सेना, पाकिस्तान ने कतर और सऊदी अरब से मांगी मदद

अफगानिस्तान से हिला पाकिस्तान! शहबाज ने कतर-सऊदी से मांगी मदद

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बढ़ते तनाव ने एक बार फिर दक्षिण एशिया में अस्थिरता की स्थिति पैदा कर दी है। अफगान सीमा पर जारी संघर्ष के बीच पाकिस्तान की सेना थकान और संसाधनों की कमी से जूझ रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, शहबाज शरीफ सरकार ने हालात काबू में लाने के लिए अब कतर और सऊदी अरब से मदद मांगी है।

यह स्थिति तब बनी है जब अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और सीमा पार से हमलों में तेजी आई है। दोनों देशों के बीच संबंध पहले ही बेहद तनावपूर्ण चल रहे थे, लेकिन हालिया झड़पों ने सैन्य और कूटनीतिक टकराव को नए स्तर पर पहुंचा दिया है।

ड्यूरंड लाइन पर तनाव चरम पर

ड्यूरंड लाइन (Durand Line) — जो पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा रेखा है — पर पिछले दो हफ्तों से लगातार गोलाबारी की खबरें आ रही हैं।
खैबर पख्तूनख्वा (Khyber Pakhtunkhwa) और बलूचिस्तान (Balochistan) के कई सीमावर्ती इलाकों में तालिबानी लड़ाकों और पाकिस्तानी सेना के बीच भिड़ंत की पुष्टि हुई है।

रिपोर्ट्स के अनुसार, अफगान सैनिकों और तालिबान समर्थित उग्रवादियों ने कई पाकिस्तानी चौकियों पर कब्जा करने की कोशिश की है। इन झड़पों में अब तक दर्जनों सैनिकों और उग्रवादियों के मारे जाने की खबर है।

पाकिस्तान की सेना ने भारी तोपखाने और हेलीकॉप्टर गनशिप्स का इस्तेमाल किया, लेकिन अफगान लड़ाके पहाड़ी इलाकों में छिपकर पलटवार कर रहे हैं, जिससे पाक सेना की हालत कमजोर दिख रही है।

शहबाज सरकार ने मांगी अरब देशों से मदद

विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने हाल ही में कतर और सऊदी अरब के नेताओं से आपातकालीन वार्ता की है।
इस बातचीत में पाकिस्तान ने वित्तीय और सैन्य सहयोग दोनों मांगा है।

सूत्रों के मुताबिक, इस्लामाबाद ने दोहरी मांग रखी है —

  1. कतर से ड्रोन तकनीक और निगरानी उपकरणों की आपूर्ति,
  2. सऊदी अरब से तेल और ईंधन आपूर्ति में राहत पैकेज।

दरअसल, पाकिस्तानी सेना के पास सीमित बजट और घटती सैन्य क्षमता की वजह से लंबे समय तक सीमा युद्ध लड़ने की स्थिति नहीं है।
सऊदी अरब और कतर, पाकिस्तान के पारंपरिक सहयोगी देश रहे हैं, लेकिन इस बार दोनों देश स्थिति को लेकर सावधानीपूर्ण रुख अपनाए हुए हैं।

तालिबान की बढ़ती ताकत ने बढ़ाई मुश्किलें

अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने के बाद से ही पाकिस्तान को उम्मीद थी कि काबुल उसके प्रभाव में रहेगा, लेकिन हालात उलट गए हैं।
तालिबान अब पाकिस्तान के खिलाफ खुलकर बोल रहा है।

तालिबान के गृह मंत्रालय ने हाल ही में बयान जारी कर कहा —

“पाकिस्तान हमारी सीमा का सम्मान नहीं कर रहा है, और उसके सैनिक अफगान जमीन पर गोलाबारी कर रहे हैं। हम अपने देश की रक्षा के लिए मजबूर हैं।”

काबुल में बैठी तालिबान सरकार का आरोप है कि पाकिस्तान ने अफगान शरणार्थियों को जबरन देश निकाला दिया है और सीमा पर आक्रामक रवैया अपनाया हुआ है।

इसके जवाब में पाकिस्तान का दावा है कि अफगानिस्तान “आतंकी समूहों को शह” दे रहा है जो पाकिस्तानी सेना पर हमले कर रहे हैं

टीटीपी (TTP) का आतंक बना सिरदर्द

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP), जो अफगानिस्तान में सुरक्षित ठिकानों से संचालित होता है, पाकिस्तानी सेना के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है।
पिछले छह महीनों में टीटीपी ने 60 से ज्यादा हमले किए हैं, जिनमें दर्जनों पाकिस्तानी सैनिक मारे गए।

बीते हफ्ते वजीरिस्तान में हुए फिदायीन हमले में 14 पाकिस्तानी जवानों की मौत ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान को शक है कि अफगान तालिबान के कुछ धड़े टीटीपी को समर्थन दे रहे हैं।

इसी वजह से पाकिस्तान सरकार अब कूटनीतिक दबाव बनाने के लिए अरब देशों की मदद चाहती है, ताकि काबुल को अलग-थलग किया जा सके।

आर्थिक संकट ने बढ़ाई परेशानी

शहबाज शरीफ सरकार पहले से ही गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रही है।
IMF (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) के बेलआउट पैकेज पर टिकी पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था में रक्षा बजट में कटौती पहले ही की जा चुकी है।

ऐसे में अफगानिस्तान के साथ सीमाई संघर्ष पाकिस्तान के लिए वित्तीय बोझ बन गया है।
तेल की बढ़ती कीमतें, डॉलर की कमी और विदेशी कर्ज ने पाकिस्तान की सैन्य क्षमता को कमजोर कर दिया है।

एक वरिष्ठ रक्षा विश्लेषक ने कहा —

“पाकिस्तान की सेना दो मोर्चों पर लड़ रही है — एक सीमा पर अफगानिस्तान से, दूसरा देश के अंदर आर्थिक अस्थिरता से।”

कतर और सऊदी अरब की भूमिका

कतर और सऊदी अरब दोनों ही अफगानिस्तान के मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
कतर ने तालिबान और अमेरिका के बीच शांति वार्ता की मेजबानी की थी, जबकि सऊदी अरब तालिबान के कुछ धड़ों पर धार्मिक प्रभाव रखता है।

पाकिस्तान चाहता है कि ये दोनों देश काबुल पर दबाव डालें ताकि तालिबान सीमा पर तनाव कम करे।
लेकिन दोनों ही देश फिलहाल इस मामले में मध्यस्थता से बच रहे हैं, क्योंकि वे नहीं चाहते कि उनका रिश्ता काबुल या वाशिंगटन से बिगड़े।

विश्लेषकों की राय

इस्लामाबाद यूनिवर्सिटी के रक्षा विशेषज्ञ डॉ. फवाद अली का कहना है —

“यह पहली बार है जब पाकिस्तान अफगानिस्तान के सामने कमजोर दिख रहा है। तालिबान के आने के बाद इस्लामाबाद को लगा था कि उसे फायदा होगा, लेकिन अब वही उसके खिलाफ खड़ा है।”

वहीं अफगान विशेषज्ञ अब्दुल रहमान साफी का कहना है —

“तालिबान अब खुद को स्वतंत्र शक्ति मानता है। वह किसी भी देश के इशारों पर नहीं चलता, चाहे वो पाकिस्तान ही क्यों न हो।”

निष्कर्ष: दक्षिण एशिया में नई अस्थिरता की आहट

अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच जारी सीमा संघर्ष सिर्फ दोनों देशों तक सीमित नहीं रहेगा — इसका असर पूरे दक्षिण एशिया की स्थिरता पर पड़ेगा।
शहबाज शरीफ सरकार पहले से ही आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रही है, ऐसे में अफगान मोर्चा उसके लिए नई चुनौती बन गया है।

अगर स्थिति काबू में नहीं आई, तो पाकिस्तान को एक और कूटनीतिक झटका लग सकता है, क्योंकि अरब देश भी अब उसकी मदद करने से पहले कई शर्तें रख रहे हैं।

दूसरी ओर, तालिबान का आत्मविश्वास और बढ़ रहा है — और यह आने वाले दिनों में क्षेत्रीय शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा साबित हो सकता है।

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