भारत रूस से तेल खरीदेगा या नहीं, विदेश मंत्रालय ने दे दिया जवाब, ट्रंप के दावों की फिर खुली पोल

भारत और रूस के बीच ऊर्जा व्यापार को लेकर फिर से चर्चा तेज हो गई है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा हाल ही में दिए गए एक बयान के बाद, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि “भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा”, भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस पर स्पष्ट और सख्त प्रतिक्रिया दी है। मंत्रालय ने कहा कि भारत अपनी ऊर्जा नीति अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर तय करता है, और किसी तीसरे देश के दबाव में नहीं आएगा। 🔍 ट्रंप का दावा — ‘भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया’ अमेरिकी चुनाव प्रचार के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने अपने एक भाषण में कहा था कि उन्होंने “भारत और कई देशों को रूस से तेल खरीदने से रोक दिया है”। ट्रंप ने कहा — “जब मैं व्हाइट हाउस में था, तब मैंने भारत से बात की थी और उन्होंने रूस से तेल नहीं खरीदा। अब वे फिर से खरीद रहे हैं क्योंकि बाइडन कमजोर हैं।” उनके इस बयान के बाद अमेरिकी और भारतीय मीडिया में हलचल मच गई। सवाल यह था कि क्या वाकई भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया है? 🗣️ विदेश मंत्रालय का जवाब — ‘हम अपनी नीति खुद तय करते हैं’ भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा — “भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए तेल आयात का निर्णय लेता है। हमारी प्राथमिकता सस्ती और स्थिर ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करना है। रूस से तेल खरीदना हमारे राष्ट्रीय हित का हिस्सा है।” उन्होंने यह भी कहा कि भारत किसी भी राजनीतिक दबाव में नहीं आता और न ही किसी तीसरे देश के बयान से अपनी नीति बदलता है। “हम रूस, अमेरिका या किसी और देश के साथ अपने संबंध संतुलित और स्वतंत्र विदेश नीति के तहत तय करते हैं।” 🛢️ भारत के लिए रूसी तेल क्यों अहम है? रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से पश्चिमी देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे। इसके बावजूद भारत ने रूसी कच्चे तेल की खरीद में जबरदस्त बढ़ोतरी की। डेटा के अनुसार: 2021 तक भारत के कुल कच्चे तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी केवल 2% थी। 2023 तक यह बढ़कर 35% से अधिक हो गई। भारत रोजाना औसतन 1.8 मिलियन बैरल रूसी तेल खरीद रहा है। इससे भारत को सस्ता क्रूड मिला, जिससे मुद्रास्फीति पर नियंत्रण और ऊर्जा सुरक्षा दोनों सुनिश्चित हुईं। 💬 ट्रंप के दावे की ‘फिर खुली पोल’ यह पहली बार नहीं है जब डोनाल्ड ट्रंप ने भारत की विदेश नीति पर विवादास्पद बयान दिया हो। लेकिन हर बार की तरह, इस बार भी भारत ने तथ्यों के साथ ट्रंप के दावे को गलत साबित कर दिया। हाल ही में जारी ऊर्जा मंत्रालय की रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि भारत अब भी रूस से लगातार तेल खरीद रहा है। सितंबर 2025 तक रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बना हुआ है — रूस: 35%, इराक: 20%, सऊदी अरब: 17%, बाकी अन्य देश: 28%। इन आंकड़ों से साफ है कि ट्रंप का बयान सिर्फ राजनीतिक प्रचार का हिस्सा था। 💼 भारत की ऊर्जा नीति — ‘कूटनीति नहीं, रणनीति’ भारत का तेल आयात किसी राजनीतिक विचार से नहीं, बल्कि आर्थिक यथार्थवाद (Economic Realism) से संचालित है। भारत को दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता माना जाता है, और उसकी जरूरतें प्रतिदिन बढ़ रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि — “अगर भारत रूस से सस्ता तेल नहीं खरीदेगा, तो उसे खाड़ी देशों से महंगा तेल लेना पड़ेगा, जिससे पेट्रोल-डीजल के दाम और महंगाई दोनों बढ़ेंगे।” इसलिए भारत ‘ऊर्जा स्वतंत्रता’ (Energy Independence) की नीति पर कायम है और किसी भी एक देश पर निर्भर नहीं रहना चाहता। 🌍 अमेरिका की चिंता — भारत-रूस की नजदीकियां अमेरिका लंबे समय से भारत पर रूस से दूरी बनाने का दबाव डालता रहा है। लेकिन भारत का रुख हमेशा स्पष्ट रहा है — “हम दुनिया के हर देश से अपने हितों के अनुसार व्यापार करेंगे।” यह रणनीति ‘भारत पहले’ (India First) नीति का हिस्सा है, जिसके तहत भारत अपने साझेदारों के साथ मल्टी-पोलर (बहुध्रुवीय) संबंध रखता है। ट्रंप के बयान से भले ही अमेरिकी राजनीति में सुर्खियां बनी हों, लेकिन भारत ने यह संदेश फिर दोहराया है कि वह किसी के प्रभाव में नहीं आने वाला देश है। 📊 रूसी तेल से भारत को क्या फायदा हुआ? सस्ता क्रूड: रूस से मिलने वाला तेल पश्चिमी बाजारों की तुलना में 20-25% सस्ता रहा। विनिमय लचीलापन: भारत-रूस ने रुपये और युआन में भुगतान के विकल्प भी अपनाए, जिससे डॉलर पर निर्भरता कम हुई। घरेलू राहत: सस्ते आयात के कारण पेट्रोल-डीजल के दाम स्थिर रहे और सरकार ने महंगाई पर काबू पाया। रिफाइनिंग लाभ: भारतीय तेल कंपनियों (IOC, BPCL, Reliance) ने सस्ते रूसी क्रूड से रिफाइन कर वैश्विक बाजार में पेट्रोल-डीजल बेचकर लाभ बढ़ाया। 🕊️ भारत का स्पष्ट संदेश — ‘हम संतुलित नीति पर चलेंगे’ विदेश मंत्रालय के बयान के बाद यह साफ है कि भारत न अमेरिका के दबाव में झुकेगा, न रूस की निर्भरता बढ़ाएगा। भारत अपने राष्ट्रीय हित और रणनीतिक संतुलन को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है। जैसा कि विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर कई बार कह चुके हैं — “यूरोप अपने लिए सस्ता गैस ढूंढ सकता है, तो भारत को भी अपने नागरिकों के लिए सस्ता तेल खरीदने का अधिकार है।” ⚡ निष्कर्ष: ट्रंप के दावे पर भारत का ठोस जवाब डोनाल्ड ट्रंप के बयान से जो भ्रम पैदा हुआ था, वह अब पूरी तरह दूर हो गया है। भारत ने एक बार फिर दुनिया को यह दिखा दिया है कि उसकी विदेश नीति ‘स्वतंत्र, दृढ़ और यथार्थवादी’ है। रूस से तेल खरीदना सिर्फ एक आर्थिक फैसला नहीं, बल्कि भारत की आत्मनिर्भर ऊर्जा नीति का हिस्सा है। और इस बार भी ट्रंप के दावों की “पोल खुल चुकी है” — भारत न झुका है, न झुकेगा।

भारत और रूस के बीच ऊर्जा व्यापार को लेकर फिर से चर्चा तेज हो गई है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा हाल ही में दिए गए एक बयान के बाद, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि “भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा”, भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस पर स्पष्ट और सख्त प्रतिक्रिया दी है। मंत्रालय ने कहा कि भारत अपनी ऊर्जा नीति अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर तय करता है, और किसी तीसरे देश के दबाव में नहीं आएगा।

ट्रंप का दावा — ‘भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया’

अमेरिकी चुनाव प्रचार के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने अपने एक भाषण में कहा था कि उन्होंने “भारत और कई देशों को रूस से तेल खरीदने से रोक दिया है”।
ट्रंप ने कहा —

“जब मैं व्हाइट हाउस में था, तब मैंने भारत से बात की थी और उन्होंने रूस से तेल नहीं खरीदा। अब वे फिर से खरीद रहे हैं क्योंकि बाइडन कमजोर हैं।”

उनके इस बयान के बाद अमेरिकी और भारतीय मीडिया में हलचल मच गई। सवाल यह था कि क्या वाकई भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया है?

विदेश मंत्रालय का जवाब — ‘हम अपनी नीति खुद तय करते हैं’

भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा —

“भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए तेल आयात का निर्णय लेता है। हमारी प्राथमिकता सस्ती और स्थिर ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करना है। रूस से तेल खरीदना हमारे राष्ट्रीय हित का हिस्सा है।”

उन्होंने यह भी कहा कि भारत किसी भी राजनीतिक दबाव में नहीं आता और न ही किसी तीसरे देश के बयान से अपनी नीति बदलता है।

“हम रूस, अमेरिका या किसी और देश के साथ अपने संबंध संतुलित और स्वतंत्र विदेश नीति के तहत तय करते हैं।”

भारत के लिए रूसी तेल क्यों अहम है?

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से पश्चिमी देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे। इसके बावजूद भारत ने रूसी कच्चे तेल की खरीद में जबरदस्त बढ़ोतरी की।

डेटा के अनुसार:

  • 2021 तक भारत के कुल कच्चे तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी केवल 2% थी।
  • 2023 तक यह बढ़कर 35% से अधिक हो गई।
  • भारत रोजाना औसतन 1.8 मिलियन बैरल रूसी तेल खरीद रहा है।

इससे भारत को सस्ता क्रूड मिला, जिससे मुद्रास्फीति पर नियंत्रण और ऊर्जा सुरक्षा दोनों सुनिश्चित हुईं।

ट्रंप के दावे की ‘फिर खुली पोल’

यह पहली बार नहीं है जब डोनाल्ड ट्रंप ने भारत की विदेश नीति पर विवादास्पद बयान दिया हो।
लेकिन हर बार की तरह, इस बार भी भारत ने तथ्यों के साथ ट्रंप के दावे को गलत साबित कर दिया

हाल ही में जारी ऊर्जा मंत्रालय की रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि भारत अब भी रूस से लगातार तेल खरीद रहा है
सितंबर 2025 तक रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बना हुआ है —

रूस: 35%,
इराक: 20%,
सऊदी अरब: 17%,
बाकी अन्य देश: 28%।

इन आंकड़ों से साफ है कि ट्रंप का बयान सिर्फ राजनीतिक प्रचार का हिस्सा था।

भारत की ऊर्जा नीति — ‘कूटनीति नहीं, रणनीति’

भारत का तेल आयात किसी राजनीतिक विचार से नहीं, बल्कि आर्थिक यथार्थवाद (Economic Realism) से संचालित है।
भारत को दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता माना जाता है, और उसकी जरूरतें प्रतिदिन बढ़ रही हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि —

“अगर भारत रूस से सस्ता तेल नहीं खरीदेगा, तो उसे खाड़ी देशों से महंगा तेल लेना पड़ेगा, जिससे पेट्रोल-डीजल के दाम और महंगाई दोनों बढ़ेंगे।”

इसलिए भारत ‘ऊर्जा स्वतंत्रता’ (Energy Independence) की नीति पर कायम है और किसी भी एक देश पर निर्भर नहीं रहना चाहता।

अमेरिका की चिंता — भारत-रूस की नजदीकियां

अमेरिका लंबे समय से भारत पर रूस से दूरी बनाने का दबाव डालता रहा है।
लेकिन भारत का रुख हमेशा स्पष्ट रहा है —

“हम दुनिया के हर देश से अपने हितों के अनुसार व्यापार करेंगे।”

यह रणनीति ‘भारत पहले’ (India First) नीति का हिस्सा है, जिसके तहत भारत अपने साझेदारों के साथ मल्टी-पोलर (बहुध्रुवीय) संबंध रखता है।

ट्रंप के बयान से भले ही अमेरिकी राजनीति में सुर्खियां बनी हों, लेकिन भारत ने यह संदेश फिर दोहराया है कि वह किसी के प्रभाव में नहीं आने वाला देश है।

रूसी तेल से भारत को क्या फायदा हुआ?

  1. सस्ता क्रूड: रूस से मिलने वाला तेल पश्चिमी बाजारों की तुलना में 20-25% सस्ता रहा।
  2. विनिमय लचीलापन: भारत-रूस ने रुपये और युआन में भुगतान के विकल्प भी अपनाए, जिससे डॉलर पर निर्भरता कम हुई।
  3. घरेलू राहत: सस्ते आयात के कारण पेट्रोल-डीजल के दाम स्थिर रहे और सरकार ने महंगाई पर काबू पाया।
  4. रिफाइनिंग लाभ: भारतीय तेल कंपनियों (IOC, BPCL, Reliance) ने सस्ते रूसी क्रूड से रिफाइन कर वैश्विक बाजार में पेट्रोल-डीजल बेचकर लाभ बढ़ाया।

भारत का स्पष्ट संदेश — ‘हम संतुलित नीति पर चलेंगे’

विदेश मंत्रालय के बयान के बाद यह साफ है कि भारत न अमेरिका के दबाव में झुकेगा, न रूस की निर्भरता बढ़ाएगा।
भारत अपने राष्ट्रीय हित और रणनीतिक संतुलन को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है।

जैसा कि विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर कई बार कह चुके हैं —

“यूरोप अपने लिए सस्ता गैस ढूंढ सकता है, तो भारत को भी अपने नागरिकों के लिए सस्ता तेल खरीदने का अधिकार है।”

निष्कर्ष: ट्रंप के दावे पर भारत का ठोस जवाब

डोनाल्ड ट्रंप के बयान से जो भ्रम पैदा हुआ था, वह अब पूरी तरह दूर हो गया है।
भारत ने एक बार फिर दुनिया को यह दिखा दिया है कि उसकी विदेश नीति ‘स्वतंत्र, दृढ़ और यथार्थवादी’ है।

रूस से तेल खरीदना सिर्फ एक आर्थिक फैसला नहीं, बल्कि भारत की आत्मनिर्भर ऊर्जा नीति का हिस्सा है।
और इस बार भी ट्रंप के दावों की “पोल खुल चुकी है”
भारत न झुका है, न झुकेगा।

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