मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव के बीच एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। इजरायल और हमास के बीच बंधकों की रिहाई को लेकर एक समझौता मंजूर होने के कुछ घंटों बाद ही अमेरिका ने 200 सैनिकों को क्षेत्र में तैनात करने का आदेश जारी कर दिया है। यह फैसला वॉशिंगटन डीसी से सीधे आया है और इसे “सुरक्षा एवं रणनीतिक स्थिरता बनाए रखने की कार्रवाई” बताया गया है। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि यह कदम इजरायल को प्रत्यक्ष सैन्य समर्थन देने की दिशा में एक और बड़ा कदम है।
इजरायल-हमास समझौते की पृष्ठभूमि
गाजा युद्ध को अब लगभग एक साल हो चुका है, और दोनों पक्षों में संघर्ष लगातार जारी है। इस बीच, हमास के कब्जे में रखे गए कई इजरायली नागरिकों की रिहाई को लेकर बातचीत लंबे समय से चल रही थी। संयुक्त राष्ट्र और मिस्र की मध्यस्थता से तैयार हुए इस समझौते में हमास ने 40 इजरायली बंधकों को छोड़ने पर सहमति दी, जबकि इजरायल ने इसके बदले 60 फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा करने की मंजूरी दी है।
इजरायल सरकार ने देर रात कैबिनेट बैठक के बाद इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से मंजूर कर लिया। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बयान जारी करते हुए कहा,
“हम अपने नागरिकों को घर लाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। यह समझौता हमारे लिए मानवता और सुरक्षा दोनों की दृष्टि से अहम है।”
अमेरिका की ‘अचानक’ सैन्य तैनाती
इजरायल के इस निर्णय के तुरंत बाद अमेरिकी रक्षा विभाग (Pentagon) ने 200 सैनिकों की तैनाती का आदेश दिया। यह सैनिक पहले से ही मध्य पूर्व में तैनात अमेरिकी नौसैनिक बेड़े का हिस्सा बताए जा रहे हैं, जिन्हें अब सीरिया, जॉर्डन और इराक की सीमाओं के पास सक्रिय किया जाएगा।
अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने कहा,
“यह कदम हमारी सुरक्षा प्रतिबद्धताओं को मजबूत करने के लिए है। हम अपने सहयोगियों को सुरक्षित रखने के लिए हर आवश्यक कदम उठाएंगे।”
जानकारों का कहना है कि यह तैनाती केवल “सुरक्षा के नाम पर” नहीं है, बल्कि यह अमेरिका का एक स्पष्ट संदेश है कि यदि हमास या ईरान समर्थित समूह फिर से हमला करते हैं, तो वॉशिंगटन सीधे हस्तक्षेप करने में देर नहीं करेगा।
ट्रंप की चेतावनी और बाइडेन प्रशासन की रणनीति
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले ही बाइडेन प्रशासन की मध्य पूर्व नीति पर सवाल उठाए थे। ट्रंप ने कहा था कि
“बाइडेन की कमजोरी के कारण मध्य पूर्व फिर से विस्फोटक स्थिति में है। अमेरिका को केवल इजरायल के हित में नहीं, बल्कि अपने सैनिकों की सुरक्षा के लिए भी सतर्क रहना होगा।”
वहीं, मौजूदा प्रशासन इसे “रणनीतिक संतुलन” बनाए रखने की नीति बता रहा है।
व्हाइट हाउस की प्रवक्ता कारिन जीन-पियरे ने कहा कि,
“हम युद्ध नहीं चाहते, लेकिन यदि हमारे हितों या सहयोगियों पर खतरा आता है, तो अमेरिका चुप नहीं रहेगा।”
हमास की प्रतिक्रिया – ‘धोखा हुआ’
हमास ने इस अमेरिकी कदम को सीधे “विश्वासघात” करार दिया है। गाजा से जारी एक बयान में हमास के प्रवक्ता ने कहा,
“इजरायल ने बंधकों की रिहाई के समझौते को मंजूर कर एक तरफ मानवता का दिखावा किया, और दूसरी तरफ अमेरिका को सैन्य रूप से मैदान में बुला लिया। यह असली चेहरा है उनकी राजनीति का।”
हमास का कहना है कि यदि अमेरिकी सैनिक इजरायल के ऑपरेशनों में शामिल होते हैं, तो समझौता तुरंत रद्द कर दिया जाएगा।
इजरायल की सीमा पर फिर से तनाव
इजरायल के उत्तरी और दक्षिणी इलाकों में फिर से सुरक्षा अलर्ट बढ़ा दिया गया है। सेना ने कहा है कि किसी भी संभावित रॉकेट हमले या सीमा पार गोलीबारी के लिए तैयारी की जा रही है।
इजरायली सेना (IDF) के प्रवक्ता ने बताया कि
“हम युद्धविराम की दिशा में काम कर रहे हैं, लेकिन हम तैयार हैं। यदि हम पर हमला हुआ, तो जवाब पहले से भी ज्यादा सख्त होगा।”
इस बीच, लेबनान के हिज़्बुल्ला ने भी चेतावनी दी है कि यदि अमेरिका और इजरायल ने संयुक्त कार्रवाई की, तो वह ‘युद्ध में शामिल होने’ से पीछे नहीं हटेगा।
मध्य पूर्व में अमेरिका की भूमिका पर सवाल
यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने इजरायल के किसी फैसले के तुरंत बाद सैन्य कदम उठाया हो। पिछले वर्ष भी गाजा पट्टी में हमलों के दौरान अमेरिकी नौसैनिक जहाज USS Gerald R. Ford को तैनात किया गया था।
विश्लेषक मानते हैं कि इस बार की तैनाती अलग है, क्योंकि यह सीधे जमीन पर मौजूदगी का संकेत है।
डिफेंस एक्सपर्ट मार्क एलन का कहना है कि,
“अमेरिका केवल इजरायल की मदद नहीं कर रहा, बल्कि वह मध्य पूर्व में फिर से अपनी ‘प्रमुख भूमिका’ स्थापित करने की कोशिश कर रहा है।”
भारत की चिंता क्यों बढ़ी?
भारत, जो हमेशा से इजरायल और अमेरिका दोनों का रणनीतिक साझेदार रहा है, इस घटनाक्रम को लेकर सतर्क है।
विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, नई दिल्ली ने “शांति और संयम बनाए रखने” की अपील की है।
भारत के एक वरिष्ठ राजनयिक ने बताया,
“हम इस क्षेत्र में किसी भी अस्थिरता से सीधे प्रभावित होते हैं, चाहे वह ऊर्जा आपूर्ति हो या प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा।”
भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि अगर यह संघर्ष बढ़ता है, तो इसका असर तेल की कीमतों और क्षेत्रीय स्थिरता पर पड़ सकता है।
रूस, चीन और ईरान की प्रतिक्रिया
इस बीच, रूस और चीन ने अमेरिका के कदम की आलोचना की है।
रूसी विदेश मंत्रालय ने बयान जारी करते हुए कहा कि
“अमेरिका मध्य पूर्व को फिर से बारूद के ढेर पर बैठा रहा है। शांति वार्ता के नाम पर उसकी कार्रवाई युद्ध को और बढ़ा रही है।”
वहीं, ईरान ने कहा कि यदि अमेरिका या इजरायल ने गाजा में ‘एक कदम भी आगे बढ़ाया’, तो उसे “भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।”
मानवीय संकट और संयुक्त राष्ट्र की भूमिका
गाजा में अभी भी मानवीय संकट गहराता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र (UN) की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले एक वर्ष में 12,000 से अधिक नागरिक मारे जा चुके हैं, जबकि लाखों लोग विस्थापित हैं।
UN महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने अपील की है कि
“बंधकों की रिहाई के साथ-साथ, नागरिकों को राहत और चिकित्सा सहायता मिलना प्राथमिकता होनी चाहिए।”
हालांकि, जमीनी स्थिति यह दिखा रही है कि राहत सामग्री और मेडिकल सप्लाई अब भी सीमित मात्रा में ही गाजा तक पहुंच पा रही है।
राजनीतिक असर – नेतन्याहू पर दबाव
इजरायल में विपक्ष लगातार प्रधानमंत्री नेतन्याहू पर दबाव बना रहा है।
कई सांसदों ने कहा है कि सरकार को “सैन्य विकल्पों से पहले कूटनीतिक समाधान” अपनाना चाहिए।
जनता में भी युद्ध को लेकर असंतोष बढ़ रहा है।
तेल अवीव में पिछले हफ्ते हजारों लोगों ने युद्ध विराम की मांग को लेकर प्रदर्शन किया था।
निष्कर्ष
इजरायल और हमास के बीच बंधकों की रिहाई का समझौता भले ही एक राहत भरा कदम लगे, लेकिन अमेरिका की सैन्य तैनाती ने हालात को फिर से तनावपूर्ण बना दिया है।
एक तरफ शांति वार्ता की बात हो रही है, वहीं दूसरी तरफ नई सैन्य गतिविधियां एक बड़े संघर्ष का संकेत दे रही हैं।
अगर आने वाले दिनों में सभी पक्ष संयम नहीं बरतते, तो यह संकट सिर्फ गाजा या इजरायल तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे मध्य पूर्व की स्थिरता को हिला सकता है।
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