श्रीनगर। अलगाववादी नेता यासीन मलिक को लेकर चल रही सियासत ने जम्मू-कश्मीर की राजनीति में नया मोड़ ले लिया है। पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) ने हाल ही में केंद्र सरकार को एक चिट्ठी लिखकर यासीन मलिक के मामले में नरमी बरतने की अपील की थी। इस पर राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि इस मुद्दे को राजनीतिक चश्मे से देखने की बजाय अदालत पर छोड़ देना चाहिए।
पीडीपी की चिट्ठी से बढ़ा विवाद
- पीडीपी नेताओं ने केंद्र को पत्र लिखकर कहा था कि यासीन मलिक के मामले में मानवीय आधार पर विचार होना चाहिए।
- पार्टी का मानना है कि संवाद और सुलह की प्रक्रिया के लिए इस तरह के कदम जरूरी हैं।
- चिट्ठी सामने आते ही विपक्षी दलों ने पीडीपी पर नरमी की राजनीति करने का आरोप लगाया।
उमर अब्दुल्ला का बयान
- मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, “इस मसले पर किसी को राजनीति नहीं करनी चाहिए। अदालत में केस चल रहा है और वही अंतिम फैसला लेगी।”
- उन्होंने यह भी जोड़ा कि न्यायपालिका पर भरोसा होना चाहिए और किसी भी सजा या राहत का फैसला अदालत ही करेगी।
- उमर ने विपक्ष को निशाना बनाते हुए कहा कि हर मुद्दे को राजनीतिक रंग देना राज्य और देश के हित में नहीं है।
यासीन मलिक का केस क्या है?
- यासीन मलिक कश्मीर के चर्चित अलगाववादी नेता और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के मुखिया हैं।
- उन पर आतंकवाद, हिंसा और धन शोधन से जुड़े कई गंभीर मामले दर्ज हैं।
- दिल्ली की NIA कोर्ट ने 2022 में उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
- इस मामले को लेकर देशभर में सियासत गरमाई रहती है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
- कांग्रेस ने पीडीपी की चिट्ठी पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह कदम आतंकवादियों को परोक्ष समर्थन देने जैसा है।
- बीजेपी ने भी इसे “राष्ट्रविरोधी तत्वों की पैरवी” बताया।
- पीडीपी का कहना है कि उनका मकसद सिर्फ कश्मीर में शांति बहाली है, न कि किसी अपराधी को बचाना।
जनता की राय
- कश्मीर में इस मुद्दे पर बंटे हुए विचार सामने आ रहे हैं।
- कुछ लोग मानते हैं कि यासीन मलिक जैसे लोगों को सख्त सजा मिलनी चाहिए ताकि आतंकवाद की राह पर चलने वालों को सबक मिले।
- वहीं, एक वर्ग का मानना है कि अगर शांति वार्ता के लिए कोई दरवाजा खुल सकता है तो उस पर विचार होना चाहिए।
निष्कर्ष
यासीन मलिक का मामला सिर्फ एक कानूनी मसला नहीं, बल्कि कश्मीर की राजनीतिक और सामाजिक जटिलताओं से जुड़ा हुआ है। पीडीपी की चिट्ठी ने सियासत को नया मोड़ दिया है, लेकिन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का यह कहना कि “फैसला अदालत पर छोड़ देना चाहिए” एक संतुलित रुख माना जा रहा है। अब देखना होगा कि आने वाले समय में अदालत और राजनीति की इस खींचतान से क्या नतीजे निकलते हैं।
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