उत्तराखंड, जिसे देवभूमि कहा जाता है, आजकल एक बड़ी प्राकृतिक चुनौती से जूझ रहा है। जोशीमठ में भू-धंसाव (Land Subsidence) की घटनाओं ने देशभर में चिंता बढ़ा दी थी, और अब खबर है कि राज्य के अन्य जिलों में भी ऐसी स्थिति सामने आने लगी है। इससे न केवल स्थानीय लोगों में भय का माहौल है बल्कि पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक भी गहरी चिंता जता रहे हैं।
जोशीमठ की घटना और सबक
जोशीमठ में घरों की दीवारों पर दरारें, ज़मीन का धंसना और सड़कों का टूटना इस बात का सबूत है कि हिमालयी क्षेत्र कितनी नाजुक स्थिति में है। वहां हजारों लोगों को घर खाली करने पड़े और पुनर्वास की स्थिति बनी। यह घटना केवल एक शहर की समस्या नहीं रही बल्कि पूरे उत्तराखंड के लिए चेतावनी बन गई।
किन जिलों में बढ़ी चिंता?
जोशीमठ के बाद अब कई अन्य जिलों में भू-धंसाव और दरारें दिखने लगी हैं:
- पिथौरागढ़ – यहां कई गांवों में ज़मीन धंसने की शिकायतें मिल रही हैं।
- चमोली – जोशीमठ के आस-पास के क्षेत्रों में लगातार दरारें फैल रही हैं।
- उत्तरकाशी – भूकंपीय गतिविधियों और निर्माण कार्यों के कारण स्थिति संवेदनशील बताई जा रही है।
- रुद्रप्रयाग और टिहरी – यहां बांध और सड़क परियोजनाओं के चलते भू-धंसाव का खतरा बढ़ गया है।
भू-धंसाव के कारण
विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं:
- अत्यधिक निर्माण कार्य – पहाड़ों पर सड़कों, सुरंगों और होटलों का तेजी से निर्माण।
- जलवायु परिवर्तन – ग्लेशियरों का पिघलना और असामान्य बारिश।
- भूकंपीय गतिविधियां – हिमालय क्षेत्र भूकंप संवेदनशील ज़ोन में आता है।
- जल स्रोतों का दोहन – अत्यधिक भूजल दोहन से ज़मीन की पकड़ कमजोर हो जाती है।
लोगों की स्थिति
प्रभावित गांवों के लोग रोज़मर्रा की ज़िंदगी को लेकर असमंजस में हैं। कई परिवार अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर जा चुके हैं। स्कूल, मंदिर और सरकारी भवनों में दरारें पड़ने से आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है।
सरकार और प्रशासन की तैयारियां
राज्य सरकार ने विशेषज्ञों की टीम गठित की है और भू-धंसाव प्रभावित इलाकों की लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है। पुनर्वास की योजनाओं पर भी काम हो रहा है। वैज्ञानिकों का सुझाव है कि संवेदनशील इलाकों में निर्माण कार्यों पर तत्काल रोक लगाई जाए और दीर्घकालिक पर्यावरणीय नीतियां बनाई जाएं।
निष्कर्ष
उत्तराखंड में भू-धंसाव की घटनाएं हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की नाजुकता को उजागर करती हैं। जोशीमठ केवल शुरुआत है, और आने वाले समय में अन्य जिलों में भी यह खतरा बढ़ सकता है। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो यह न केवल स्थानीय लोगों की ज़िंदगी बल्कि पूरे राज्य की अर्थव्यवस्था और पर्यटन पर गंभीर असर डाल सकता है।
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