काठमांडू/विशेष रिपोर्ट
नेपाल इन दिनों अपनी अब तक की सबसे बड़ी युवा-चालित राजनीतिक हलचल का सामना कर रहा है। Gen-Z आंदोलन के नाम से मशहूर यह विद्रोह केवल सड़कों पर नारेबाजी तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसकी लपटें सीधे सत्ता के गलियारों तक पहुँच गईं। राजधानी काठमांडू में हज़ारों युवाओं ने सरकार और मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। आंदोलन ने उस समय नाटकीय रूप ले लिया जब गुस्साए प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति के निजी आवास तक पहुँच गए और नेपाली कांग्रेस के केंद्रीय कार्यालय में आगजनी कर दी। इस घटना ने नेपाल की राजनीति को हिला दिया है और पूरे देश को गहरी चिंता में डाल दिया है।
आंदोलन की शुरुआत: युवाओं का गुस्सा क्यों फूटा?
नेपाल में बेरोज़गारी दर पिछले कई वर्षों से लगातार बढ़ रही है। खासकर स्नातक और उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं के बीच नौकरी की कमी एक बड़ा संकट बनकर सामने आई है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के अनुसार, नेपाल से हर साल लाखों युवा विदेशों में रोज़गार की तलाश में पलायन कर रहे हैं। वहीं, देश के भीतर भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और अपारदर्शी राजनीति को लेकर असंतोष गहराता गया।
Gen-Z आंदोलन की जड़ें इन्हीं हालात में छिपी हैं।
- यह आंदोलन मूल रूप से विश्वविद्यालयों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर पनपा।
- युवा कार्यकर्ताओं ने रोजगार, शिक्षा सुधार, भ्रष्टाचार-रोधी कदम और राजनीतिक पारदर्शिता की मांगों को केंद्र में रखा।
- आंदोलन को “नई पीढ़ी बनाम पुरानी राजनीति” की लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है।
घटनाक्रम: जब सड़कों से सत्ता के दरवाज़े तक पहुँचे प्रदर्शनकारी
7 सितंबर की शाम राजधानी काठमांडू की सड़कों पर हज़ारों युवा जमा हुए। शुरुआत में यह एक शांतिपूर्ण मार्च था, लेकिन रात होते-होते भीड़ उग्र हो गई।
- प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन और सरकारी दफ्तरों के सामने प्रदर्शन किया।
- नारे लगे: “हमें रोज़गार दो”, “भ्रष्टाचार बंद करो”, “नया नेपाल चाहिए।”
- पुलिस ने पहले हल्का बल प्रयोग और आंसू गैस का इस्तेमाल किया, लेकिन भीड़ को काबू करना मुश्किल हो गया।
स्थिति तब बिगड़ी जब एक बड़ा समूह राष्ट्रपति के निजी आवास की ओर बढ़ा। सुरक्षा घेरा तोड़कर प्रदर्शनकारी वहाँ तक पहुँच गए और जोरदार नारेबाजी की। यह घटना नेपाल के हालिया इतिहास में पहली बार मानी जा रही है, जब कोई आंदोलन सीधे राष्ट्रपति के निवास तक जा पहुँचा।
इसी दौरान, गुस्साए युवाओं के एक अन्य गुट ने नेपाली कांग्रेस के केंद्रीय कार्यालय में घुसकर तोड़फोड़ की और आग लगा दी। आगजनी में भवन का एक हिस्सा पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। दमकल की कई गाड़ियों ने घंटों की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया।
सुरक्षाबलों की भूमिका और हालात
घटनाओं के बाद राजधानी काठमांडू और अन्य प्रभावित क्षेत्रों में कर्फ्यू जैसे हालात हैं।
- नेपाल पुलिस और आर्म्ड फोर्सेस को तैनात किया गया है।
- कई जगह इंटरनेट सेवाएं अस्थायी रूप से बंद कर दी गई हैं ताकि अफवाहें और भड़काऊ संदेश न फैल सकें।
- अब तक दर्जनों युवाओं को हिरासत में लिया गया है और कई घायल भी हुए हैं।
सरकार का दावा है कि हालात धीरे-धीरे काबू में हैं, लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, माहौल अभी भी तनावपूर्ण है और किसी भी समय हिंसा भड़क सकती है।
युवाओं की मांगें क्या हैं?
आंदोलनकारी स्पष्ट रूप से कुछ बुनियादी मांगों को लेकर सामने आए हैं:
- रोज़गार के अवसर: युवाओं का कहना है कि शिक्षा पूरी करने के बाद उनके पास रोजगार के विकल्प नहीं बचते।
- भ्रष्टाचार पर अंकुश: राजनीतिक दलों और नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की निष्पक्ष जांच।
- शिक्षा सुधार: सरकारी विश्वविद्यालयों में पारदर्शी प्रवेश प्रक्रिया और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा।
- राजनीतिक पारदर्शिता: युवाओं का राजनीति में सीधा प्रतिनिधित्व और पुरानी “विकास में देरी करने वाली” राजनीति का अंत।
- प्रवासी पलायन पर रोक: विदेश जाने वाले युवाओं को रोकने के लिए रोजगार और स्टार्टअप नीति।
राजनीतिक प्रतिक्रिया: सत्ता और विपक्ष दोनों पर सवाल
आंदोलन के बाद नेपाल की राजनीति में हलचल तेज हो गई है।
- प्रधानमंत्री की ओर से बयान आया है कि सरकार युवाओं की चिंताओं को समझती है और जल्द ठोस कदम उठाएगी।
- राष्ट्रपति कार्यालय ने अपील की है कि युवा अपनी बात शांतिपूर्ण तरीके से रखें और हिंसा से बचें।
- विपक्षी दलों का कहना है कि यह आंदोलन सरकार की विफल नीतियों का नतीजा है।
लेकिन सबसे बड़ा झटका नेपाली कांग्रेस को लगा है, जिसका कार्यालय जलकर राख हो गया। कांग्रेस नेताओं ने घटना की कड़ी निंदा की और इसे “लोकतंत्र पर हमला” बताया। हालांकि प्रदर्शनकारियों का कहना है कि कांग्रेस समेत सभी पुराने दल उनके लिए “आशाओं की कब्र” साबित हुए हैं।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
नेपाल में भड़की इस हिंसा पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी चिंता जताई है। पड़ोसी भारत ने शांति और स्थिरता बनाए रखने की अपील की है। वहीं, संयुक्त राष्ट्र ने युवाओं की मांगों को सुनने और संवाद का रास्ता अपनाने पर जोर दिया है।
विशेषज्ञों की राय: नई पीढ़ी बनाम पुरानी व्यवस्था
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह आंदोलन केवल तत्कालीन घटनाओं की प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि लंबे समय से पनप रहा असंतोष है।
- नेपाल की “Gen-Z पीढ़ी” इंटरनेट और सोशल मीडिया के ज़रिए दुनिया के बदलते हालात को देख रही है।
- वे लोकतंत्र, रोजगार और अवसरों को लेकर अधिक जागरूक और मुखर हैं।
- पुरानी राजनीतिक व्यवस्था अब उनकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर रही।
काठमांडू विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर का कहना है, “यह सिर्फ एक आंदोलन नहीं, बल्कि नई पीढ़ी की राजनीतिक चेतना का विस्फोट है। अगर सरकार ने इन्हें गंभीरता से नहीं लिया, तो आने वाले वर्षों में नेपाल की राजनीति पूरी तरह बदल सकती है।”
आगे का रास्ता: समाधान या टकराव?
नेपाल सरकार के सामने अब दो रास्ते हैं—
- युवाओं के साथ संवाद कर उनकी मांगों पर ठोस कदम उठाना।
- या फिर आंदोलन को सिर्फ “कानून-व्यवस्था की समस्या” मानकर दबाना।
पहला रास्ता कठिन जरूर है लेकिन स्थिरता की ओर ले जाएगा, जबकि दूसरा रास्ता टकराव और अराजकता को बढ़ा सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि नेपाल के नेताओं को अब यह समझना होगा कि नई पीढ़ी को नज़रअंदाज़ करना लोकतंत्र को खतरे में डालने के बराबर है।
निष्कर्ष
नेपाल का Gen-Z आंदोलन इस बात का सबूत है कि युवा अब केवल दर्शक नहीं, बल्कि बदलाव के सक्रिय वाहक बन चुके हैं। राष्ट्रपति के घर तक पहुँचना और कांग्रेस का ऑफिस फूंकना केवल प्रतीक नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि अगर राजनीति नहीं बदली, तो देश में व्यापक उथल-पुथल हो सकती है।
यह आंदोलन सिर्फ नेपाल का मुद्दा नहीं है, बल्कि दक्षिण एशिया समेत पूरी दुनिया के लिए एक सबक है—जहां भी युवाओं की उम्मीदें टूटीं, वहां व्यवस्था को हिलने से कोई नहीं रोक सकता।
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