नेहा सिंह राठौर को हाईकोर्ट से झटका, FIR रद्द करने की याचिका खारिज

नेहा सिंह राठौर

लखनऊ। मशहूर लोकगायिका नेहा सिंह राठौर, जो अक्सर अपने गानों और राजनीतिक व्यंग्यों को लेकर सुर्खियों में रहती हैं, को आज बड़ा झटका लगा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। अब नेहा को केस का सामना करना होगा।

क्या है पूरा मामला?

  • नेहा सिंह राठौर ने हाल ही में एक गाना गाया था जिसमें सरकार की नीतियों और प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर सवाल उठाए गए थे।
  • इस गाने के बाद उन पर समाज में अशांति फैलाने और सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने का आरोप लगाते हुए FIR दर्ज की गई।
  • उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि यह FIR उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है।

हाईकोर्ट का फैसला

  • अदालत ने माना कि FIR में दर्ज आरोपों की जांच जरूरी है और इस स्तर पर FIR को खारिज नहीं किया जा सकता।
  • जज ने कहा कि याचिकाकर्ता चाहे तो जांच के दौरान या ट्रायल कोर्ट में अपने बचाव के सबूत पेश कर सकती हैं।
  • कोर्ट ने साफ किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं है, और अगर इससे समाज में तनाव फैलने की आशंका हो तो जांच एजेंसियां कार्रवाई कर सकती हैं।

नेहा की दलीलें

  • नेहा का कहना था कि उनके गाने का उद्देश्य केवल सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को उजागर करना था।
  • उन्होंने इसे लोकतांत्रिक अधिकार और कला की स्वतंत्रता बताया।
  • लेकिन कोर्ट ने इस दलील को स्वीकार नहीं किया और कहा कि यह तय करना जांच का विषय है कि गाना किस इरादे से गाया गया और उसका असर क्या हुआ।

राजनीतिक रंग

  • यह मामला अब राजनीतिक बहस का विषय बन गया है।
  • विपक्षी दलों ने कहा कि यह सरकार की आवाज दबाने की कोशिश है।
  • वहीं, सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं का कहना है कि अभिव्यक्ति की आड़ में समाज में जहर घोलने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

अब आगे क्या?

  • FIR खारिज न होने से अब नेहा सिंह राठौर को केस की कानूनी प्रक्रिया का सामना करना होगा।
  • अगर पुलिस चार्जशीट दाखिल करती है, तो ट्रायल कोर्ट में सुनवाई शुरू होगी।
  • वहीं, नेहा के वकीलों ने संकेत दिए हैं कि वे इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।

निष्कर्ष

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से नेहा सिंह राठौर की मुश्किलें बढ़ गई हैं। जहां एक ओर यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सामाजिक जिम्मेदारी की बहस को जन्म दे रहा है, वहीं दूसरी ओर यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या कलाकारों को राजनीतिक आलोचना के लिए कानूनी शिकंजे में फंसाना ठीक है या नहीं।

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