वाराणसी में चल रहे ज्ञानवापी मस्जिद केस की सुनवाई करने वाले जज को आतंकी संगठन ISIS द्वारा धमकी मिलने का मामला सामने आया है। धमकी में कहा गया कि “काफिर का खून हलाल है और यदि आपने केस में निर्णय के खिलाफ कदम उठाया तो परिणाम भुगतने होंगे।”
मामले की पृष्ठभूमि
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद ने पिछले कुछ वर्षों में देशभर में ध्यान आकर्षित किया है। इस केस की सुनवाई कर रहे जज ने इस मामले में संवेदनशील और निष्पक्ष फैसला लेने के लिए सुरक्षा एजेंसियों से सतर्क रहने का अनुरोध किया था।
हाल ही में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) और स्थानीय पुलिस ने जज को मिली धमकी की गंभीरता का पता लगाया। जांच के दौरान खुलासा हुआ कि यह धमकी ISIS के सक्रिय आतंकियों ने दी थी, जो भारत में धार्मिक उन्माद और डर फैलाने की साजिश रच रहे थे।
धमकी का विवरण
जज को भेजे गए संदेश में सीधे तौर पर धमकी दी गई थी। इसमें कहा गया कि यदि केस में उनके निर्णय संगठन की इच्छाओं के अनुरूप नहीं रहे, तो वे और उनके परिवार सुरक्षित नहीं रहेंगे।
सुरक्षा एजेंसियों ने इस खतरे को गंभीरता से लिया और जज की व्यक्तिगत सुरक्षा बढ़ा दी। इसके साथ ही वाराणसी और आसपास के इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था को कड़ा कर दिया गया।
NIA का खुलासा
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की जांच में पता चला कि धमकी ISIS के स्थानीय नेटवर्क द्वारा भेजी गई थी। एजेंसी ने कहा कि यह केवल एक व्यक्ति या समूह की साजिश नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन द्वारा भारत में भय फैलाने की कोशिश थी।
NIA ने जज और उनके परिवार को सतर्क रहने की सलाह दी और कहा कि ऐसे मामलों में सुरक्षा और गोपनीयता सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।
विशेषज्ञों की राय
सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन भारत में धार्मिक मामलों के माध्यम से तनाव फैलाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि जजों और न्यायपालिका को हमेशा सुरक्षा के दृष्टिकोण से सतर्क रहना चाहिए।
विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि ISIS जैसी साजिशों का मुकाबला केवल पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक और न्यायिक जागरूकता भी जरूरी है।
निष्कर्ष:
ज्ञानवापी केस के जज को मिली धमकी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन भारत में डर और तनाव फैलाने के लिए सक्रिय हैं। न्यायपालिका और सुरक्षा एजेंसियों की सतर्कता ही ऐसे मामलों में राष्ट्र की सुरक्षा और कानून के शासन को बनाए रखने की कुंजी है।
इस घटना ने यह भी संदेश दिया कि धर्म और न्याय के मामलों में निष्पक्षता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन न्यायपालिका को किसी भी तरह के दबाव के बिना निर्णय लेने का अधिकार सुरक्षित रहना चाहिए।
















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