मेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के “गाज़ा पुनर्निर्माण प्लान” पर पाकिस्तान की सरकार बुरी तरह उलझ गई है। एक दिन पहले जहाँ पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने ट्रंप के इस प्रस्ताव को “असंतुलित और एकतरफा” बताते हुए ठुकरा दिया था, वहीं 24 घंटे के भीतर ही प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने बयान देकर कहा – “इंशाअल्लाह, पाकिस्तान क्षेत्र में शांति बहाल करने के हर प्रयास में साथ है।” इस बयान के बाद पाकिस्तान की विदेश नीति को लेकर फिर से भ्रम की स्थिति बन गई है।
क्या है ट्रंप का “गाज़ा प्लान”?
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कुछ दिन पहले एक नया “गाज़ा रिकंस्ट्रक्शन एंड पीस प्लान” (Gaza Reconstruction and Peace Plan) पेश किया था। इस योजना के तहत, अमेरिका, इज़रायल और कुछ अरब देशों के साथ मिलकर गाज़ा में युद्ध के बाद के पुनर्निर्माण और शांति व्यवस्था की निगरानी करना चाहता है।
इस प्लान में यह भी कहा गया है कि हमास के कब्जे वाले इलाकों में “अंतरराष्ट्रीय प्रशासनिक ढांचा” बनाया जाएगा, जिसमें सऊदी अरब, मिस्र और यूएई की भूमिका होगी — लेकिन पाकिस्तान का नाम इसमें नहीं जोड़ा गया।
पाकिस्तान की पहली प्रतिक्रिया – “यह एकतरफा प्रस्ताव”
ट्रंप के इस बयान के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था,
“ट्रंप का यह प्रस्ताव पूरी तरह एकतरफा है। इसमें फिलिस्तीन की असली आवाज़ को नज़रअंदाज किया गया है। पाकिस्तान किसी भी ऐसे कदम का हिस्सा नहीं बनेगा जो फिलिस्तीनियों की संप्रभुता को कमजोर करे।”
इशाक डार ने यहां तक कहा कि अगर अमेरिका सच में शांति चाहता है तो उसे पहले इज़रायल पर युद्धविराम का दबाव डालना चाहिए और “फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र” के रूप में मान्यता देनी चाहिए।
24 घंटे बाद शहबाज़ शरीफ का यू-टर्न
लेकिन अगले ही दिन प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने एक अलग ही बयान देकर सबको चौंका दिया। इस्लामाबाद में मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा –
“हमारे लिए गाज़ा में शांति सबसे अहम है। अगर कोई भी देश इस दिशा में सकारात्मक पहल करता है, तो पाकिस्तान उस प्रयास में ‘इंशाअल्लाह’ साथ रहेगा।”
उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान हमेशा से “मानवीय दृष्टिकोण” से फिलिस्तीन के साथ खड़ा रहा है, लेकिन शांति बहाली के लिए राजनयिक संवाद का स्वागत किया जाना चाहिए।
क्या अमेरिका से बैकडोर बातचीत चल रही है?
पाकिस्तान के इस यू-टर्न के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या इस्लामाबाद और वाशिंगटन के बीच गुप्त स्तर पर बातचीत चल रही है।
सूत्रों के अनुसार, ट्रंप कैंप की ओर से पाकिस्तान को एक “सीमित भूमिका” देने का ऑफर किया गया है — जिसमें पाकिस्तान को “शांति पर्यवेक्षक” या “मानवीय सहायता प्रदाता” के रूप में शामिल किया जा सकता है।
हालांकि, इस बात की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
विपक्ष का हमला – “नीति में भ्रम और अवसरवादिता”
पाकिस्तान के विपक्षी दलों ने शहबाज़ सरकार पर जमकर निशाना साधा।
इमरान खान की पार्टी पीटीआई (PTI) ने कहा कि सरकार की विदेश नीति “भ्रम और अवसरवाद” से भरी है।
पीटीआई प्रवक्ता ने कहा,
“एक दिन ट्रंप को झूठा कहने वाले मंत्री, अगले दिन उसी के साथ ‘इंशाअल्लाह’ बोलते हैं। यही है पाकिस्तान की डूबती कूटनीति।”
वहीं, जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के नेता मौलाना फजलुर्रहमान ने कहा कि
“गाज़ा का मुद्दा इस्लामी एकता से जुड़ा है, इसे किसी अमेरिकी एजेंडे के लिए नहीं छोड़ा जा सकता।”
अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों की राय
कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान का यह भ्रम आर्थिक दबाव और अंतरराष्ट्रीय अलगाव का नतीजा है।
अमेरिका और आईएमएफ के साथ बातचीत के दौरान पाकिस्तान कई वित्तीय समझौतों पर निर्भर है।
ट्रंप का प्रस्ताव, अगर स्वीकृत होता है, तो पाकिस्तान को मध्य पूर्व में कुछ ‘रोल’ और आर्थिक मदद भी मिल सकती है।
एक विश्लेषक ने कहा –
“शहबाज़ सरकार आर्थिक संकट में है। ऐसे में ट्रंप के साथ नरमी दिखाकर पाकिस्तान कूटनीतिक लाभ लेना चाहता है। लेकिन इससे उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।”
फिलिस्तीन की प्रतिक्रिया
फिलिस्तीनी प्रशासन ने कहा है कि उन्हें ट्रंप के किसी भी “नए प्लान” में कोई भरोसा नहीं है।
उनका कहना है कि 2020 में ट्रंप द्वारा लाया गया “Peace to Prosperity” प्लान भी पूरी तरह इज़रायल समर्थक था और उसी ने आज के संघर्ष की नींव रखी थी।
फिलिस्तीनी विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा –
“अगर पाकिस्तान वास्तव में हमारे साथ है, तो उसे हर उस योजना से दूरी बनानी चाहिए जो हमें कमजोर करती है।”
गाज़ा की स्थिति अब भी गंभीर
संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, गाज़ा में अब भी 15 लाख से अधिक लोग बेघर हैं।
बिजली, पानी और दवाओं की भारी कमी है।
इज़रायल की लगातार सैन्य कार्रवाई के चलते अस्पताल बंद होने की कगार पर हैं।
ऐसे में ट्रंप का “रिकंस्ट्रक्शन प्लान” कई मानवाधिकार संगठनों के निशाने पर है, जो इसे “राजनीतिक शांति का मुखौटा” बता रहे हैं।
निष्कर्ष
पाकिस्तान की दोहरी कूटनीति ने एक बार फिर उसके विदेश नीति के अस्थिर चरित्र को उजागर कर दिया है।
जहाँ एक ओर उसके मंत्री अमेरिकी प्रस्ताव को ठुकरा रहे हैं, वहीं प्रधानमंत्री वैश्विक मंच पर “सहयोग” की बात कर रहे हैं।
गाज़ा संकट जैसे संवेदनशील मुद्दे पर यह विरोधाभास पाकिस्तान की साख को और कमजोर कर रहा है।
अभी के हालात में यह कहना मुश्किल है कि पाकिस्तान वास्तव में ट्रंप के गाज़ा प्लान का हिस्सा बनेगा या नहीं,
पर इतना तय है कि इस “यू-टर्न” ने पाकिस्तान को राजनयिक असमंजस और अंतरराष्ट्रीय आलोचना के केंद्र में ला खड़ा किया है।
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