काठमांडू। नेपाल की राजनीति में सोमवार को बड़ा उलटफेर देखने को मिला। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारी दबाव और लगातार बिगड़ते हालात के बीच अपने पद से इस्तीफा दे दिया। यह फैसला तब आया है जब देश में Gen-Z आंदोलन ने व्यापक रूप ले लिया है और सरकार की नीतियों के खिलाफ युवाओं का आक्रोश सड़कों से लेकर राष्ट्रपति भवन तक पहुँच चुका है। ओली के इस्तीफे के साथ ही नेपाल की सियासत में एक बार फिर अस्थिरता गहराती दिख रही है।
इस्तीफे का ऐलान
- सोमवार शाम ओली ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा:
“मैंने हमेशा नेपाल की एकता और स्थिरता के लिए काम किया, लेकिन मौजूदा हालात में मेरे पद पर बने रहने से संकट और गहराएगा। इसलिए मैं प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे रहा हूँ और आशा करता हूँ कि आने वाला नेतृत्व देश को सही दिशा देगा।” - इस्तीफे की चिट्ठी उन्होंने राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल को सौंपी।
- उनके इस फैसले के बाद काठमांडू में राजनीतिक गलियारों से लेकर आम जनता के बीच हलचल तेज़ हो गई।
इस्तीफे की वजहें
ओली के इस्तीफे के पीछे कई प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं:
- Gen-Z आंदोलन का दबाव – युवाओं का गुस्सा चरम पर था। राष्ट्रपति भवन तक हुए विरोध प्रदर्शनों और कांग्रेस मुख्यालय में आगजनी ने सरकार की नींव हिला दी।
- सहयोगी दलों का समर्थन खत्म होना – सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल कई छोटे दल पहले ही ओली से नाराज़ थे। तीन मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया था।
- आर्थिक संकट और बेरोजगारी – महंगाई और बेरोजगारी के कारण आम जनता का भरोसा टूट चुका था।
- अंतरराष्ट्रीय दबाव – संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने नेपाल सरकार से आंदोलनकारियों के साथ संवाद की अपील की थी।
इस्तीफे से पहले का राजनीतिक माहौल
- बीते कुछ हफ्तों से काठमांडू में हालात लगातार बिगड़ रहे थे।
- युवाओं के नेतृत्व में चल रहा आंदोलन हिंसक रूप ले चुका था।
- संसद में विपक्ष लगातार ओली पर तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगा रहा था।
- यहां तक कि सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) के भीतर भी बगावत की आवाज़ें उठ रही थीं।
राष्ट्रपति भवन पर घटनाक्रम
- राष्ट्रपति पौडेल ने ओली का इस्तीफा स्वीकार करते हुए उन्हें नए प्रधानमंत्री के चुनाव तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने रहने का निर्देश दिया।
- राष्ट्रपति ने सभी दलों से आग्रह किया है कि वे मिलकर देश में राजनीतिक स्थिरता और शांति बनाए रखें।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
- नेपाली कांग्रेस के नेता शेरबहादुर देउबा ने कहा – “ओली सरकार ने युवाओं की आवाज़ को दबाने की कोशिश की, लेकिन लोकतंत्र में जनता की शक्ति सबसे बड़ी होती है। उनका इस्तीफा देर से लिया गया फैसला है।”
- माओवादी केंद्र के प्रमुख पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ ने भी कहा – “देश को नए नेतृत्व और नई दिशा की जरूरत है। अब युवाओं को राजनीति में अधिक जिम्मेदारी देनी होगी।”
आंदोलनकारियों का रुख
- Gen-Z आंदोलन के नेताओं ने ओली के इस्तीफे का स्वागत किया, लेकिन कहा कि यह उनकी लड़ाई का अंत नहीं है।
- उनका कहना है कि:
“हम सिर्फ एक चेहरे के खिलाफ नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था के खिलाफ लड़ रहे हैं। हमें पारदर्शी और जवाबदेह राजनीति चाहिए।” - आंदोलनकारियों ने यह भी साफ किया कि वे तब तक प्रदर्शन जारी रखेंगे जब तक उनकी मुख्य मांगें पूरी नहीं होतीं।
जनता की प्रतिक्रिया
- आम नागरिकों के बीच मिश्रित प्रतिक्रिया देखने को मिली।
- एक ओर लोगों को उम्मीद है कि ओली के इस्तीफे से संकट कम होगा।
- वहीं, दूसरी ओर जनता को डर है कि कहीं सत्ता संघर्ष से हालात और न बिगड़ जाएँ।
- काठमांडू के दुकानदारों ने कहा – “हम शांति चाहते हैं। राजनीति के झगड़े में आम जनता परेशान हो रही है।”
संभावित उत्तराधिकारी कौन?
ओली के इस्तीफे के बाद अब नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता का नया दौर शुरू हो गया है।
- नेपाली कांग्रेस और माओवादी केंद्र ने नए गठबंधन की कवायद शुरू कर दी है।
- शेरबहादुर देउबा और प्रचंड सबसे बड़े दावेदार माने जा रहे हैं।
- हालांकि, यह भी संभावना है कि राष्ट्रपति पौडेल राष्ट्रीय सरकार (National Government) बनाने का आह्वान करें, जिसमें सभी दल शामिल हों।
अंतरराष्ट्रीय नजर
- भारत ने कहा कि वह नेपाल की जनता और उनके लोकतांत्रिक फैसले का सम्मान करता है।
- चीन ने चिंता जताई और कहा कि नेपाल में राजनीतिक स्थिरता पूरे क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है।
- अमेरिका और यूरोपीय संघ ने भी शांतिपूर्ण समाधान और युवाओं की मांगों पर गंभीरता से विचार करने की अपील की।
विशेषज्ञों की राय
- राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि ओली का इस्तीफा नेपाल के लिए संवैधानिक और राजनीतिक संकट की शुरुआत है।
- विशेषज्ञों का कहना है कि अगर नई सरकार जल्दी नहीं बनी तो आंदोलन और भड़क सकता है।
- कुछ जानकार इसे नेपाल की राजनीति का नया युग मान रहे हैं, जिसमें युवाओं का सीधा हस्तक्षेप दिख रहा है।
भविष्य की चुनौती
- नई सरकार का गठन – क्या बहुमत बन पाएगा?
- युवाओं की मांगों का समाधान – बेरोजगारी और भ्रष्टाचार पर क्या कदम उठेंगे?
- आर्थिक संकट – विदेशी निवेश और विकास कार्यों को कैसे आगे बढ़ाया जाएगा?
- राजनीतिक स्थिरता – क्या नए नेतृत्व पर जनता भरोसा कर पाएगी?
केपी शर्मा ओली का इस्तीफा नेपाल की राजनीति में एक बड़ा मोड़ है। यह सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि एक नई राजनीतिक चेतना की शुरुआत है, जिसे युवाओं ने हवा दी है। अब सवाल यह है कि नेपाल की राजनीतिक पार्टियाँ क्या वास्तव में जनता की आवाज़ को सुनेंगी, या फिर यह इस्तीफा भी सिर्फ सत्ता की कुर्सी की अदला-बदली बनकर रह जाएगा।
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