आज 7 सितंबर 2025 को वर्ष का अंतिम चंद्र ग्रहण लग रहा है। धार्मिक और खगोलीय दृष्टिकोण से यह ग्रहण अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है, विशेषकर यह ग्रहण पितृपक्ष के दौरान पड़ा है, जो इसे और अधिक प्रभावशाली बनाता है।
क्या है चंद्र ग्रहण?
चंद्र ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है और चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ती है। इस दौरान चंद्रमा लाल रंग का दिखाई देता है, जिसे आमतौर पर “Blood Moon” कहा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार चंद्र ग्रहण का कारण:
हिंदू शास्त्रों में चंद्र ग्रहण का वर्णन सांस्कृतिक और दैवीय घटनाओं के रूप में किया गया है। पुराणों के अनुसार, जब समुद्र मंथन हुआ था तब अमृत पीने के लिए राहु नामक दैत्य ने छल से देवताओं के बीच बैठकर अमृत पी लिया था। यह देखकर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट दिया, लेकिन तब तक अमृत उसके गले तक पहुंच चुका था। उसका सिर “राहु” और धड़ “केतु” कहलाए। मान्यता है कि जब-जब राहु और केतु सूर्य या चंद्रमा के मार्ग में आते हैं, तो ग्रहण होता है। चंद्र ग्रहण तब होता है जब राहु चंद्रमा को ग्रसता है। शास्त्रों में इसे दैवीय चेतावनी और आत्म-शुद्धि का अवसर माना गया है।
चंद्र ग्रहण – 7 सितंबर 2025 समय-सारिणी (IST)
समय
सूतक काल प्रारंभ दोपहर 12:57 बजे
उपच्छाया प्रारंभ रात 8:58 बजे
आंशिक ग्रहण प्रारंभ रात 9:57 बजे
पूर्ण ग्रहण (Totality) रात 11:01 बजे से 12:23 बजे तक
ग्रहण मध्य (Peak) रात 11:42 बजे
ग्रहण समाप्त रात्रि 1:26 बजे
उपच्छाया समाप्त रात्रि 2:25 बजे
सूतक काल का महत्व
चंद्र ग्रहण का सूतक काल ग्रहण शुरू होने से 9 घंटे पहले ही आरंभ हो जाता है।
इस अवधि में धार्मिक कार्य जैसे पूजा, भोजन, मंदिर प्रवेश, मंगल कार्य आदि वर्जित माने जाते हैं।
गर्भवती महिलाओं को विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए।
ग्रहण काल में क्या करें?
भगवान का नामस्मरण, मंत्र जाप, स्तोत्र पाठ करें
तुलसी, गंगाजल, शिव मंत्र का उच्चारण विशेष फलदायी होता है
शांतिपूर्वक ध्यान करें और मानसिक शुद्धता बनाए रखें
ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान करें और शुद्ध जल का छिड़काव करें
जरूरतमंदों को दान-पुण्य अवश्य करें (कपड़े, अन्न, गौसेवा आदि)
क्या न करें?
पूजा-पाठ, भोजन-जल ग्रहण
भगवान की मूर्ति या ग्रंथ को स्पर्श
कोई शुभ या नया कार्य आरंभ
गर्भवती महिलाएं बाहर न जाएं, तीखे या धारदार वस्तुओं का प्रयोग न करें
पितृपक्ष में ग्रहण का योग
यह चंद्र ग्रहण पितृपक्ष के दौरान पड़ रहा है, अतः पितरों की तृप्ति हेतु ध्यान, जप, तर्पण या मौन व्रत अत्यंत पुण्यदायी माना गया है।
जिनके माता-पिता या पूर्वज अब इस संसार में नहीं हैं, वे सच्चे मन से कुछ मिनट भी तर्पण करें, तो पितरों की कृपा अवश्य मिलती है।
Satya Vachan News की अपील:
ग्रहण काल केवल धार्मिक नहीं, आत्मिक जागरण का समय भी होता है। यह प्रकृति का एक संकेत है — रुकिए, भीतर झांकिए और अपने जीवन को पुनः संतुलित कीजिए।
> ग्रहण शुद्धि का काल है, संयम, श्रद्धा और साधना से ही इसका सार्थक फल मिलता है।
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