बिहार की सियासी ज़मीन एक बार फिर गरमाने लगी है। आगामी विधानसभा चुनावों के लिए राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारियों को धार देना शुरू कर दिया है। इसी क्रम में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 45 सदस्यीय चुनाव अभियान समिति की घोषणा कर दी है, जिसमें केंद्रीय मंत्रियों से लेकर राज्य स्तरीय नेताओं तक को जगह दी गई है। यह समिति चुनावी रणनीति, जनसंपर्क अभियान और मीडिया मैनेजमेंट जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भाजपा का मार्गदर्शन करेगी।
इस विस्तृत रिपोर्ट में हम जानेंगे इस समिति की संरचना, कौन-कौन से दिग्गज शामिल हैं, उनके ज़िम्मेदारियाँ क्या होंगी, और यह समिति आगामी चुनावों में पार्टी के लिए कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
चुनावी पृष्ठभूमि: क्यों अहम है यह समिति?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। बीते कुछ महीनों में सत्ताधारी दलों के बीच मतभेद, जातीय जनगणना का मुद्दा, बेरोज़गारी, और गठबंधन की राजनीति जैसे कई विषय सुर्ख़ियों में रहे हैं। ऐसे में भाजपा के लिए यह चुनाव सिर्फ सत्ता में वापसी का मौका नहीं बल्कि अपनी राजनीतिक जमीन को और भी पुख्ता करने का अवसर भी है।
गृह मंत्री अमित शाह पहले ही ‘मिशन 160+’ का ऐलान कर चुके हैं, जिसका लक्ष्य है एनडीए को दो-तिहाई बहुमत दिलाना। इस लक्ष्य को साधने के लिए भाजपा ने अब एक मजबूत चुनाव अभियान समिति का गठन किया है।
समिति का स्वरूप: कौन हैं वो 45 चेहरे?
BJP द्वारा जारी की गई इस समिति में कई चर्चित चेहरे शामिल हैं। इनमें से कई वर्तमान में केंद्रीय मंत्री हैं, तो कुछ बिहार की राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी हैं। समिति में शामिल प्रमुख नाम इस प्रकार हैं:
- गिरिराज सिंह – केंद्रीय मंत्री, आक्रामक हिंदुत्व और किसान मुद्दों पर मुखर
- रविशंकर प्रसाद – पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री, पटना से सांसद
- अश्विनी कुमार चौबे – केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री, बक्सर से सांसद
- राजीव प्रताप रूड़ी – सांसद, सिविल एविएशन के विशेषज्ञ
- सम्राट चौधरी – बिहार BJP अध्यक्ष, पिछड़ा वर्ग की मजबूत आवाज
- नित्यानंद राय – केंद्रीय गृह राज्य मंत्री, यादव समुदाय का प्रतिनिधित्व
- संजीव चौरसिया – पटना की युवा आवाज, शिक्षाविद्
- मंगनी लाल मंडल – कोसी क्षेत्र से भाजपा का प्रतिनिधित्व
- हरि मांझी – अनुसूचित जाति समुदाय का सशक्त चेहरा
- किरण देवी – महिला नेत्री, सीमांचल क्षेत्र से
इसके अलावा भाजपा ने हर क्षेत्रीय संतुलन को साधने की कोशिश की है। समिति में सवर्ण, पिछड़ा, अति पिछड़ा, दलित, महिला, युवा और अल्पसंख्यक समुदायों से नेताओं को स्थान दिया गया है।
समिति की जिम्मेदारियाँ: चुनावी रणभूमि में कौन क्या करेगा?
इस 45 सदस्यीय समिति को विभिन्न उप-समूहों में बाँटा गया है:
1. रणनीति और योजना निर्माण प्रकोष्ठ
यह समूह चुनावी मुद्दों को चिन्हित करेगा, अभियान की समयरेखा बनाएगा और प्रचार का स्वरूप तय करेगा। इसमें नीति विशेषज्ञ, रणनीतिकार और पूर्व चुनावी अनुभव रखने वाले नेता शामिल हैं।
2. जनसंपर्क एवं जनसभा प्रकोष्ठ
यह टीम बड़े पैमाने पर जनसभाएं आयोजित करेगी, वर्चुअल और भौतिक जनसंपर्क अभियानों को संभालेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की रैलियों की योजना यहीं से बनेगी।
3. सोशल मीडिया एवं आईटी प्रकोष्ठ
युवा वोटरों को टारगेट करने के लिए सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग किया जाएगा। इस टीम में सोशल मीडिया एक्सपर्ट्स, कंटेंट क्रिएटर्स और डिजिटल इन्फ्लुएंसर्स को समाहित किया गया है।
4. बूथ प्रबंधन प्रकोष्ठ
विधानसभा स्तर पर कार्यकर्ताओं को संगठित करना, मतदान प्रतिशत बढ़ाना और बूथ जीतो अभियान को गति देना इस टीम की प्राथमिकता है।
5. मीडिया संवाद प्रकोष्ठ
प्रेस कॉन्फ्रेंस, डिबेट में भागीदारी, अखबारों में लेख और टीवी चैनलों पर पार्टी का पक्ष रखने की ज़िम्मेदारी इस समूह पर होगी।
राजनीतिक संकेत: क्यों यह समिति है खास?
भाजपा ने इस समिति के जरिए कई महत्वपूर्ण संदेश देने की कोशिश की है:
- जातीय संतुलन साधना: ओबीसी, दलित और सवर्ण नेताओं को समान प्रतिनिधित्व दिया गया है।
- क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व: कोसी, मिथिला, मगध, तिरहुत, सीमांचल, भोजपुर, और अंग क्षेत्र से कम से कम एक सदस्य को समिति में शामिल किया गया है।
- युवा और महिला सशक्तिकरण: समिति में युवाओं और महिलाओं को पर्याप्त स्थान देकर भाजपा ने साफ किया है कि वह नए भारत की सोच के साथ खड़ी है।
विपक्ष की प्रतिक्रिया: क्या कहते हैं विरोधी?
समिति की घोषणा के कुछ ही घंटों में विपक्ष ने भाजपा पर कटाक्ष करना शुरू कर दिया। RJD नेता तेजस्वी यादव ने कहा,
“भाजपा चाहे जितनी भी समिति बना ले, बिहार की जनता अब झूठे वादों में नहीं आने वाली।“
कांग्रेस प्रवक्ता शक्ति सिंह गोहिल ने तंज कसा,
“45 लोगों की समिति बनाना दिखाता है कि भाजपा को अपने नेताओं पर भरोसा नहीं है।“
हालाँकि भाजपा नेताओं का कहना है कि यह समिति ‘सामूहिक नेतृत्व’ का उदाहरण है।
चुनावी समीकरण: क्या समीकरण बैठा पाएगी समिति?
बिहार में जातीय राजनीति एक निर्णायक कारक रही है। भाजपा ने इस बार सामाजिक समीकरणों को संतुलित करने की पूरी कोशिश की है:
- ओबीसी नेतृत्व: सम्राट चौधरी, नित्यानंद राय जैसे नेता
- यादव विरोधी रणनीति: यादव समुदाय के भीतर विभाजन की रणनीति
- महिला वोट बैंक: उज्ज्वला योजना, लाडली बहना योजना जैसे मुद्दों के सहारे महिलाओं को साधने की योजना
- मुस्लिम समुदाय पर फोकस: सीमांचल में सॉफ्ट टोन और विकास पर आधारित संवाद
इसके अलावा भाजपा प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता, केंद्र सरकार की योजनाओं और विपक्षी गठबंधन की विफलताओं को भुनाने की रणनीति पर काम कर रही है।
भविष्य की दिशा: क्या करेगी यह समिति आगे?
दैनिक समीक्षा बैठकें
समिति हर सप्ताह समीक्षा बैठक करेगी। ज़िलेवार रिपोर्ट, बूथ रिपोर्ट और सोशल मीडिया पर पार्टी की स्थिति पर मंथन किया जाएगा।
फ़ील्ड में लगातार निगरानी
समिति के सदस्य विधानसभा क्षेत्रों का दौरा करेंगे, स्थानीय मुद्दों को समझेंगे और स्थानीय नेताओं के साथ संवाद बनाएंगे।
डेटा-ड्रिवन प्रचार
समिति डेटा का उपयोग कर ऐसे मुद्दों की पहचान करेगी जो हर क्षेत्र में प्रभावशाली हो सकते हैं — जैसे बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में राहत योजनाएं, शहरी क्षेत्रों में रोजगार के मुद्दे, इत्यादि।
राजनीतिक विश्लेषण: क्या कहता है अनुभव
पिछले चुनावों में भाजपा ने कई बार चुनाव समिति मॉडल का उपयोग किया है — उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक में यह रणनीति कारगर रही। बिहार में 2020 में भाजपा ने नीतीश कुमार की अगुवाई में NDA के लिए जमीन तैयार की थी, लेकिन इस बार भाजपा खुद को फ्रंटफुट पर देखना चाहती है।
समिति का गठन एक संकेत है कि भाजपा अब सिर्फ ‘मोदी मैजिक’ के भरोसे नहीं रहना चाहती, बल्कि ज़मीनी संगठन को मज़बूत बनाकर हर विधानसभा सीट पर मजबूत पकड़ बनाना चाहती है।
समाप्ति विचार: क्या यह समिति करेगी चमत्कार
भाजपा की यह 45 सदस्यीय चुनाव अभियान समिति केवल चुनावी प्रबंधन का यंत्र नहीं है, बल्कि यह पार्टी के भविष्य की राजनीतिक दृष्टि का भी प्रतीक है। यह समिति न केवल चुनावी प्रचार को मजबूती देगी, बल्कि यह बताएगी कि पार्टी संगठनात्मक दृष्टि से कितनी परिपक्व हो चुकी है।
अब देखना यह होगा कि क्या यह समिति बिहार की राजनीतिक धरातल पर वह कमाल कर पाएगी जिसकी अपेक्षा पार्टी नेतृत्व कर रहा है।
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