बिहार में नागरिक रजिस्ट्रेशन (SIR – State Identity Register) की लिस्ट को लेकर एक बड़ी बहस छिड़ गई है। ताजा रिपोर्टों के अनुसार, बिहार की SIR लिस्ट से लगभग 3.66 लाख लोग बाहर कर दिए गए हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी गंभीरता से सवाल उठाया है और अधिकारियों से जवाब मांगा है।
क्या है मामला
राज्य सरकार द्वारा तैयार की गई SIR लिस्ट में नाम दर्ज कराने के लिए नागरिकों को आवेदन करना था। लेकिन अंतिम लिस्ट में 3.66 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं किए गए। इस निर्णय के बाद प्रभावित लोगों में भारी असंतोष फैल गया है। कई लोग दावा कर रहे हैं कि उन्हें गलत तरीके से बाहर रखा गया।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और पूछा है कि आखिर इस सूची से इतने लोगों को क्यों हटाया गया। अदालत ने यह भी कहा कि यदि कोई नागरिक अपनी पहचान साबित कर सकता है, तो उसे सूची में शामिल किया जाना चाहिए।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
मामले ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। विपक्षी पार्टियों ने राज्य सरकार पर लोगों को बाहर करने का आरोप लगाया है। वहीं, राज्य सरकार का कहना है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह कानूनी और पारदर्शी रही।
सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिक अधिकार संगठनों का कहना है कि यह मामला संवेदनशील है, क्योंकि सूची में नाम न होने पर लोगों को कई सरकारी सुविधाओं और अधिकारों से वंचित किया जा सकता है।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं
विशेषज्ञों का मानना है कि SIR लिस्ट जैसी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और सही डेटा का होना बेहद जरूरी है। अगर किसी की पहचान गलत तरीके से बाहर हो जाती है, तो न्यायालय में उसकी शिकायत दर्ज होनी चाहिए और जल्द से जल्द उसका समाधान होना चाहिए।
आगे की राह
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है और जल्द ही जवाब मांगा है। अदालत के निर्देशों के बाद यह स्पष्ट होगा कि उन 3.66 लाख लोगों की पहचान को कैसे सूची में वापस शामिल किया जाएगा।
निष्कर्ष:
बिहार SIR लिस्ट से लोगों के बाहर होने का मामला केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि संवैधानिक अधिकारों का भी सवाल है। सुप्रीम कोर्ट की संज्ञान लेने से इस विवाद का जल्द समाधान मिलने की उम्मीद बढ़ गई है।
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